प्रधानमंत्री कार्यालय डीएलएफ-रॉबर्ट वाड्रा जमीन सौदेबाजी पर सूचना सार्वजनिक नहीं करना चाहता है.वह इसे “गोपनीय” मानते हुए आरटीआई दायरे से अलग रखना चाहता है.
सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर डीएलएफ-वाड्रा प्रकरण में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा इस मामले में फैसले के बाद सूचना मांगी तो सूचना मांगी तो पीएमओ ने अपने पत्र दिनांक 06 जून द्वारा यह कह कर सूचना देने से मना कर दिया है कि यह “गोपनीय” सूचना है. उन्होंने इसके लिए एक दूसरे सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंस्टीट्युट में कोई भी सूचना नहीं देना चाहता है. वह इन्हें “गोपनीय” सूचना मानता है और इन्हें आरटीआई एक्ट के तहत दिये जाने से छूट चाहता है.
ध्यान रहे कि सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के ऊप आरोप लगा था कि उन्होंने सरकार की जमीन औने पौने में लेकर रियल स्टेट से जुड़ी देश की अग्रणी कम्पनी डीएलएफ को भारी कीमत पर बेची थी. आरोप है कि डीएलएफ ने इसके बदले वाड्रा को कम्पनी का शेयर जारी किया था.
नूतन ने डीएलएफ-वाड्रा प्रकरण में अपने द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर रिट याचिका के सम्बन्ध में रूटीन सूचनाएँ मांगी थीं कि याचिका की प्रति पीएमओ में कब प्राप्त हुई और उस पर क्या कार्यवाही की गयी. साथ ही सम्बंधित फ़ाइल के नोटशीट की प्रति भी मांगी थी.
पीएमओ ने पहले अपने पत्र दिनांक 01 मार्च 2013 द्वारा यह कह कर सूचना देने से मना कर दिया था कि प्रकरण अभी न्यायालय में विचाराधीन है.
ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया बनाम शौंक एच सत्या में दिये निर्णय का भी सहारा लिया है जवकि वह प्रकरण “वैश्वासिक नातेदारी” से सम्बंधित था और यह मामला कथित भ्रष्टाचार से सम्बंधित है.
सवाल यह है कि आखिर पीएमओ आरटीआई के विरुद्ध जा कर इतनी सामान्य सूचना भी क्यों नहीं देना चाहता? आखिर इस फ़ाइल में ऐसी कौन सी बात छिपी है?