उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा लोकसभा क्षेत्र है वाल्मीकिनगर। 2009 में पहली बार अस्तित्व में आया। 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां से जदयू के वैद्यानाथ महतो निर्वाचित हुए थे तो 2014 में भाजपा के सतीशचंद्र दुबे निर्वाचित हुए थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को कोई उम्मीदवार नहीं मिल रहा था। आखिरकार तत्कालीन विधायक सतीशचंद्र दुबे को भाजपा ने टिकट दिया और मोदी लहर में संसद में पहुंच गये।
वीरेंद्र यादव के साथ लोकसभा का रणक्षेत्र – 3
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सांसद — सतीशचंद्र दुबे — भाजपा — ब्राह्मण
विधान सभा क्षेत्र — विधायक — पार्टी — जाति
वाल्मीकिनगर — धीरेंद्र प्रताप सिंह — निर्दलीय — राजपूत
रामनगर — भागीरथी देवी — भाजपा — मेहतर
नरकटियागंज — विनय वर्मा — कांग्रेस — कायस्थ
बगहा — राघव शरण पांडेय — भाजपा — ब्राह्मण
लौरिया — विनय बिहारी — भाजपा — राजपूत
सिकटा — फिरोज अहमद — जदयू — शेख
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2014 में वोट का गणित
सतीश चंद्र दुबे — भाजपा — ब्राह्मण — 364011 (41 फीसदी)
पूर्णमासी राम — कांग्रेस — रविदास — 246218 (28 फीसदी)
वैद्यनाथ महतो — जदयू — कुशवाहा 81612 (9 फीसदी)
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सामाजिक बनावट
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वाल्मीकिनगर एकमात्र लोकसभा सीट है, जहां हार-जीत में थारू जनजाति की बड़ी भूमिका होती है। इस क्षेत्र में थारू वोटरों की संख्या 1 लाख से अधिक बतायी जाती है। यादव वोटरों की संख्या डेढ़ लाख और मुसलमान वोटरों की संख्या सवा लाख होगी। सवर्णों में सबसे ज्यादा ब्राह्मण हैं, जिनका वोट 80 हजार के आसपास है। ब्राह्मणों के बाद राजपूतों का वोट है। अतिपिछड़ा में बिंद, मल्लाह, नोनिया की भी अच्छी आबादी है। कुशवाहा वोटरों की संख्या भी लगभग एक लाख है। भाजपा के विधायक राघवशरण पांडेय कहते हैं कि वाल्मीकिनगर का सामाजिक समीकरण अन्य क्षेत्रों के समान ही है, लेकिन थारू इस क्षेत्र की राजनीति का अलग फैक्टर हैं। इस पर सभी पार्टियों का ध्यान होता है। वाल्मीकिनगर क्षेत्र के कई जनप्रतिनिधियों से बातचीत में यह बात उभर सामने आयी कि चुनाव में जातीय फैक्टर महत्वपूर्ण तत्व है। 2014 के चुनाव में जदयू को जबरदस्त पराजय का सामना करना पड़ा था और उम्मीदवार की जमानत भी जब्त हो गयी थी। पिछले चुनाव में सवर्णों के साथ ही अतिपिछड़ा भी भाजपा के साथ खड़ा हो गये थे। इसके साथ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का लाभ भाजपा को मिला था। सूत्रों की माने तो भाजपा फिलहाल सीट के बंटवारे पर मौन है। इसने जदयू की परेशानी में डाल दिया है।
एनडीए का दलदल
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2009 में एनडीए उम्मीदवार के रूप में जदयू के वैद्यनाथ महतो ने अपनी किस्मत आजमायी थी और सफल रहे थे। लेकिन 2014 के चुनाव में दोनों अलग-अलग थे। जदयू ने महतो को फिर से उम्मीदवार बनाया, जबकि भाजपा ने सतीशचंद्र दुबे का मैदान में उतारा। अब सवाल है कि 2019 में सीट किसके खाते में जाएगी। भाजपा अपना दावा छोड़ेगी या जदयू अपना दावा जतायेगा। अभी तय नहीं है। भाजपा और जदयू दोनों जोर आजमाईश कर रहे हैं। दरअसल जदयू के साथ गठबंधन से भाजपा के कई सांसदों की राजनीति पर तलवार लटक रही है। भाजपा किसे टिकट देगी और किसे बेटिकट करेगी, अभी तय नहीं है। गठबंधन के नाम पर ‘शहीद’ होने वालों में सतीशचंद्र दुबे का नाम की अभी घोषणा नहीं हुई। लेकिन अभी टिकट भी कंफर्म नहीं है।
कौन-कौन हैं दावेदार
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वाल्मीकिनगर में जदयू व भाजपा दोनों खेमा तैयारी कर रहा है। जबकि महागठबंधन की ओर से यह सीट कांग्रेस के खाते में जाने की उम्मीद है। कांग्रेस के प्रमुख दावेदारों में पूर्व मंत्री पूर्णमासी राम के अलावा नरकटियांगज विधायक विनय वर्मा भी बताये जा रहे हैं। कहा यह भी जा रहा है कि पिछले चुनाव में सामान्य सीट से अनुसूचित जाति के पूर्णमासी राम को उम्मीदवार बनाना कांग्रेस के लिए भारी पड़ गया था। पूर्णमासी फिलहाल चुनाव के लिए जनसंपर्क कर रहे हैं। जबकि विनय वर्मा की सक्रियता बढ़ी हुई है। भाजपा की ओर से सतीशचंद्र दुबे के अलावा बगहा के विधायक राघव शरण पांडेय भी चुनाव की तैयारी में बताये जाते हैं। माना जा रहा है कि जदयू इस बार युवा उम्मीदवार के नाम पर वैद्यनाथ महतो के बजाये नये नामों पर भी विचार कर सकता है। इसमें वाल्मीकिनगर के निर्दलीय विधायक धीरेंद्र प्रताप सिंह उर्फ रिंकू सिंह और सिकटा के विधायक व मंत्री फिरोज अहमद भी दावेदारों की लाइन में हैं। कुल मिलाकर वाल्मीकिनगर सीट से कई विधायक दावेदार हैं, लेकिन फिलहाल सीट बंटवारे का इंतजार करना होगा।