विधि आयोग ने बच्चों की अभिरक्षा और संरक्षण के मामले में बाल कल्याण के कानूनों में संशोधन किये जाने की आवश्यकता जताई है। साथ ही कुछ मामलों में संयुक्त अभिरक्षा की अवधारणा को लागू करने के विकल्प पर भी विचार करने की सलाह दी है।
आयोग ने भारत में बाल संरक्षण और अभिरक्षा कानूनों में सुधार को लेकर विधि एवं न्याय मंत्री डी वी सदानन्द गौड़ा को आज अपनी 257वीं रिपोर्ट पेश की, जिसमें मौजूदा कानूनों में बदलाव पर जोर दिया गया है। आयोग का मानना है कि तलाक होने और परिवार टूटने का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर ही होता है। अक्सर माता-पिता तलाक के दौरान सौदेबाजी में अपनी संतानों को मोहरे की तरह इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में वे बच्चों की भावनाओं और सामाजिक, मानसिक उतार-चढ़ाव का ख्याल नहीं रखते।
आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि कानून में कुछ परिवर्तनों द्वारा असंतुलन की स्थिति को कुछ हद तक सुधारा जा सकता है। कानून में संशोधन के जरिये अदालत को ऐसी पहल करने का काम सौंपा जा सकता है, जिससे हर मामले में बच्चों का कल्याण सुनिश्चित हो सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अदालतों ने कल्याण के सिद्दांत को मान्यता दी है, लेकिन इसके मुताबिक कानून के विभिन्न पहलुओं और कानूनी ढांचे में बदलाव नहीं हो पाया है। तलाक और परिवार टूटने के मामलों मे अदालतें बच्चों की अभिरक्षा पिता या माता के हाथ सौंप देती हैं, लेकिन बच्चों के कल्याणार्थ संयुक्त अभिरक्षा पर विचार नहीं किया जाता है।