जनता दल परिवार के विलय की संभावना की गति तेजी पकड़ रही है। दावा किया जा रहा है कि अगले महीने यानी संक्रात के बाद विलय की औपचारिक घोषणा हो सकती है। लेकिन यह विलय जीतनराम मांझी सरकार के लिए खतरा भी बन सकता है। यह भी संभव है कि विलय के बाद सरकार ही अल्‍पमत में आ जाए और बिहार में भाजपा के नेतृत्‍व में नयी सरकार बन जाए। यह सब संभव है विधायकों की संख्‍या के खेल और दल-बदल विरोधी कानून के फेर में।lalu

वीरेंद्र यादव

 

बिहार के संदर्भ में विलय का स्‍वरूप अभी तय नहीं है। यदि राजद का जदयू में विलय हो जाता है तो सरकार पर कोई खतरा नहीं है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि राजद के 24 विधायकों में से 16 यानी दो-तिहाई या उससे अधिक सदस्‍य विलय के लिए सहमत हों। इसकी संभावना भी क्षीण है। राजद के ही कई विधायक अभी से भाजपा में अपने लिए संभावना तलाश रहे हैं। यदि ऐसे विधायकों की संख्‍या नौ हो गयी तो राजद का जदयू में विलय असंभव हो जाएगा। यदि 16 से कम विधायक राजद से जदयू में जाते हैं तो उनकी सदस्‍यता खत्‍म हो जाएगी।

 

इससे भी बड़ा खतरा जदयू और खासकर मांझी सरकार के लिए है। यदि राजद व जदयू के मिलकर कोई नयी पार्टी बनती है तो उसके लिए जदयू के विधायकों का दो-तिहाई यानी 115 में करीब 78 विधायकों का समर्थन जरूरी है। ऐसा नहीं होता है तो विलय की संभावना पर ग्रहण लग सकता है। जदयू विधायकों में असंतोष अभी कमा नहीं है। यदि 38 विधायकों ने विलय का विरोध कर दिया तो सरकार भी खतरे में पड़ सकती है।

 

मान लें कि जदयू के 30 विधायकों ने विलय का विरोध किया और भाजपा को समर्थन देने का निर्णय लिया तो सरकार का जाना तय है। इसकी संभावना को नकारा नहीं जा सकता है। यदि 89 सदस्‍यों वाले भाजपा विधायक दल को जदयू के शेष विधायकों का समर्थन मिल जाए तो भाजपा की सरकार भी बन सकती है। विलय को लेकर संभावनाओं का अंत नहीं है। लेकिन इतना तय है कि विलय भी इतना आसान नहीं है, जितना जनता परिवार के लोग समझ रहे हैं।

By Editor


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