जनता परिवार के विलय का सबसे ज्‍यादा असर बिहार पर पड़ने वाला है। यह कहा जा सकता है कि बिहार में लालू यादव व नीतीश कुमार की मजबूरियों ने विलय की पृष्‍ठभूमि तैयार की। लेकिन इसका सर्वाधिक खामियाजा लालू यादव को भुगतना पड़ेगा।lalu yadav

वीरेंद्र यादव

 

अभी सिर्फ छह पार्टियों के विलय की घोषणा हुई है। यानी सभी विलय पर सहमत हैं। नवगठित पार्टी के  नेता मुलायम सिंह यादव होंगे। पार्टी का नाम व चुनाव चिह्न पर विचार के लिए कमेटी गठित की गयी है। विलय को आधिकारिक मान्‍यता तभी मिलेगी, जब पार्टी का नाम तय होगा और फिर इस पार्टी को चुनाव आयोग मान्‍यता दे देगा। इसके बाद पार्टी के संसदीय या विधानमंडल दल में हेरफेर होगा। साथ ही मूल पार्टी के दावों पर विवाद शुरू होगा।

 

 

राजनीतिक नियुक्तियों में हासिए पर यादव

लेकिन इस विलय से लालू यादव की राजनीतिक जमीन और अस्तित्‍व समाप्‍त हो जाने का खतरा उत्‍पन्‍न हो जाएगा। जिस यादव जाति को लालू यादव अपना आधार वोट मानते रहे हैं, क्‍या वह नये दल को स्‍वीकार कर पाएगा। क्‍या कुर्मी मुख्‍यमंत्री बनाने के लिए यादव वोट को लालू शिफ्ट करा पाएंगे। नीतीश कुमार के शासनकाल में यादव समाज सामाजिक और प्रशासनिक रूप काफी प्रताडि़त किया गया। राजनीतिक नियुक्तियों में एकाध यादव को जगह मिली, जबकि कम से कम दो सौ व्‍यक्तियों की नियुक्ति आयोग, परिषद और निगमों में की गयी।

 

राजद न लालटेन

नयी पार्टी के गठन के बाद राजद और लालटेन दोनों लालू यादव के हाथ निकल जाएगा। सत्‍ता में यादव सीएम की संभावना भी खत्‍म हो जाएगी। वैसी स्थिति में यादव लालू यादव के कहने पर कुर्मी को मुख्‍यमंत्री बनाने के लिए नयी पार्टी को वोट करेगा। यह बड़ा सवाल है। विलय के बाद राजनीतिक रूप से लालू को अपना अस्तित्‍व बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। लगातार चार सीटों (विधानसभा में राघोपुर व सोनपुर और लोकसभा में सारण और पाटलिपुत्र) पर हारने और विधान परिषद उपचुनाव में बेटी मीसा भारती को खड़ा नहीं कर पाने की विवशता के बाद लालू यादव का जाति पर पकड़ बने होने का दावा ज्‍यादा दमदार नहीं लगता है। विलय के बाद लालू की जमीनी पकड़ और आधार भी समाप्‍त हो जाए, तो इसमें आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए।

 

 

By Editor

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