जनता परिवार के विलय पर विराम लग गया है। राष्ट्रीय स्तर पर छह दलों की कौन कहे, अब बिहार में जदयू और राजद का विलय संभव नहीं। राजद में लालू यादव के बढ़ते विरोध ने विलय की संभावनाओं पर पानी फेर दिया है।
वीरेंद्र यादव, बिहार ब्युरो चीफ
जदयू नेता नीतीश कुमार में विलय को लेकर काफी प्रयास किया और अंजाम दिखने भी लगा था। लेकिन विलय की मौखिक सहमति के बाद जब बात कानूनी प्रक्रियाओं की ओर बढ़ी तो पेंच बढ़ने लगा। विलय प्रक्रिया ज्यों-ज्यों संवैधानिक प्रक्रियाओं की ओर बढ़ती गयी, विलय की संभावना क्षीण होती जा रही है। बिहार के संदर्भ में विधायकों का दलबदल संभव है, लेकिन दोनों दलों का विलय असंभव है।
संवैधानिक प्रावधान
संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, 1985 में संविधान के 52वें संशोधन से दल-बदल कानून बना था और संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गयी थी। इस संशोधन के तहत संविधान के अनुच्छेद 101, 102, 190 और 191 में बदलाव किया गया। इसके बाद 2003 में संविधान के 91वें संशोधन के तहत दसवीं अनुसूची में बदलाव किया गया। इस संशोधन के तहत यह व्यवस्था दी गयी है कि केवल संपूर्ण दल का विलय ही संभव है। लेकिन संपूर्ण दल का विलय वर्तमान माहौल संभव नहीं है। क्योंकि दोनों दलों में बागी खेमा मौजूद है और अलग अस्तित्व बनाए रखेगा।
दम तोड़ रहा नीतीश का सपना
राजनीतिक जानकारों की मानें तो नये दल के गठन की प्रक्रिया भी आसान नहीं है। नये दल को पहले चुनाव आयोग में पंजीयन करना होगा। दल के नेता के आग्रह पर चुनाव आयोग चुनाव चिह्न का आवंटन कर सकता है और नहीं भी कर सकता है। फिर दल की मान्यता के लिए एक निर्धारित वोट भी विधानसभा चुनाव में हासिल करना होगा। यानी दल की मान्यता भी उसे विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन के बाद मिलेगी। कुल मिलाकर, नीतीश या लालू के पास सीमित विकल्प ही हैं।
जदयू के विधायक राजद में शामिल हों या राजद के विधायक जदयू, यही विकल्प उनके पास बचता है। यह भी दलबदल होगा, दलों का विलय नहीं। क्योंकि न तो पूरा जदयू पाला बदल सकता है और न पूरा राजद पाला बदल सकता है। कुर्सी की लड़ाई में उलझे नीतीश कुमार और लालू यादव के पास अब विलय का विकल्प नहीं बचा है। देखना यह रोचक होगा कि राजद के विधायक जदयू में शामिल होंगे या जदयू के विधायक राजद में। लेकिन अस्तित्व दोनों दलों का बचा रहेगा, विधायक भले सिर्फ एक या गिनती भर के हों।