विश्व महिला दिवस के उपलक्ष्य में साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुआ कवयित्री सम्मेलन
पटना,९ मार्च। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन का मंच आज पूरी तरह कवयित्रियों को समर्पित रहा। आज सम्मेलन बिलकुल अलग तेवर और मिज़ाज में दिखा। कवयित्रियाँ भी ख़ूब मौज में रहीं और एक से बढ़कर एक गीत–ग़ज़ल सुनाकर, सम्मेलन–सभागार को ख़ुशनुमा माहौल से भर दिया। कवयित्रियाँ मंच पर प्रतिष्ठित थीं और कविगण श्रोता दीर्घा में बैठ कर इस यादगार क्षण को नज़रों में समा कर रख लेना चाहते थे। खचाखच भरे सभागार में प्रमुख साहित्यिक हस्तियों को, सुधी जनों के साथ कवयित्रियों को, भाव–विहवल मुद्रा में सुनाते देखना भी एक सुखद अनुभूति की तरह था। अवसर था, विश्व महिला दिवस के उपलक्ष्य में,कवयित्री सम्मेलन का। वरिष्ठ कवयित्री और सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा की अध्यक्षता में आयोजित कवयित्री–सम्मेलन का उद्घाटन वरिष्ठ कवयित्री कालिन्दी त्रिवेदी ने किया।
काव्य–गंगा की गंगोत्री बनी कवयित्री किरण सिंह, जिन्होंने वाणी–वंदना से गीत का जल छोड़ा। सागरिका राय ने वीर वायु–सैनिक अभिनंदन को अभिवादन करते हुए इन पंक्तियों से देश के वीरों को स्मरण किया कि, “ न रूदन हो, ना क्रन्दन हो! अब सिर्फ़ और सिर्फ़, ‘अभिनंदन‘का अभिनंदन हो!”। डा सुलक्ष्मी कुमारी ने ‘माँ की पाती‘ की इन पंक्तियों से वीरों को नमन किया कि, “माँ ने पत्र लिखा प्यार से, बेटा न मेरे दूध लजाना/ एक इंच पीछे मत हटना/ चाहे इंच–इंच तुम कट जाना“। विभा रानी श्रीवास्तव ने पीड़ा के प्रश्नों को इस तरह शब्द दिए कि, “मुद्दा ये नहीं कि मैं अपने ज़ख़्मों को कुरेद रही हूँ/ ज़ख़्म हैं तो कभी बहेंगे हीं/ कभी हल्की सी चोट पर उभर भी आएँगे/प्रश्न ये है कि ज़ख़्म बने क्यूँ ?”
कवयित्री पुष्पा जमुआर ने कहा– “वक़्त के धारे बहे, गर्म शोलों की तरह/ तिनका–तिनका बिखर गई थी मैं दरखत की तरह“। डा सुमेधा पाठक ने स्त्री–मन की व्यथा को इन पंक्तियों में व्यक्त किया कि, “ दिल की बगिया वीरान पड़ी/ माँ आँगन सूना रहा/ पुष्प–विहीन डंठलों में, उलझ तितलियों के पंख कोमल !”।
वरिष्ठ कवयित्री शांति ओझा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, सुभद्रा शुभम, डा अर्चना त्रिपाठी, पूनम आनंद, ड़ा सुधा सिन्हा, डा लक्ष्मी सिंह, अनुपमा नाथ,डा बीणा बेनीपुरी,सरोज तिवारी, उषा सिंह, कुमारी लता प्रासर, कृष्णा सिंह, प्रतमा पराशर,अन्नपूर्णा सिंह,कुमारी स्मृति, डा नीतू सिंह, अर्चना सिन्हा, रेखा भारती,पूजा ऋतुराज, आनिमा वर्नवे, मधु रानी,कुमारी मेनका, नंदिनी प्रनय ने भी अपनी रचनाओं से ख़ूबसूरत अहसास जगाया।
अपनी अध्यक्षीय कविता–पाठ में, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने स्त्री को ‘प्रकृति और धरित्री के रूप में प्रतिष्ठा देती हुई, इन पंक्तियों से महिला–सशक्तिकरण को स्वर दिया कि,“मैं सबल धारा हूँ/ तूफ़ानी हवा से घबड़ाती नहीं/ मज़बूत जड़ों में धंसी हूँ!”।
सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ,साहित्य मंत्री डा भूपेन्द्र कलसी, कवि आरपी घायल, कवि विजय गुंजन, राज कुमार प्रेमी, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, शुभ चंद्र सिन्हा, राधेश्यम मिश्र, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, पंकज प्रियम, जय प्रकाश पुजारी, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता समेत बड़ी संख्या में साहित्यसेवी एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे। मंच का संचालन कवयित्री डा शालिनी पांडेय ने किया।