हेल्थ इंस्टिच्युट में ‘इवौलविंग पैराडिग्म्स इन न्यूरो–रिहबिलिटेशन‘ पर आयोजित हुई पूर्ण–दिवसीय कार्यशाला
पटना, ५ मई। बेउर स्थित इंडियन इंस्टिच्युट औफ़ हेल्थ एजुकेशन ऐंड रिसर्च में आज पूरा दिन चिकित्सा–विज्ञानियों का जमावड़ा रहा। मानसिक–विकलांगों तथा मस्तिष्क–आघात से पीड़ित रोगियों के पुनर्वास के संबंध में आज दिन भर गहन विचार–विमर्श और चर्चाएँ हुईं। इंदिरा गाँधी इंस्टिच्युट औफ़ मेडिकल साइंसेज़, पटना के निदेशक डा एन आर विश्वास, पूर्व निदेशक और वरिष्ठ नयूरोलौजिस्ट डा अजय कुमार सिंह, न्यूरोसर्जरी विभाग के अध्यक्ष डा केशव मोहन झा, सुप्रसिद्ध न्यूरो–रेडियोलौजिस्ट तथा एम्स पटना के रेडियोलौजी विभाग के अध्यक्ष डा सुभाष कुमार, डा गुंजन कुमार, डा नरेंद्र कुमार सिन्हा, डा उदय शंकर प्रसाद, डा विनय कुमार पांडेय, डा जोशनी पांडेय, डा रीना श्रीवास्तव आदि अनेक विशेषज्ञों ने अपने वैज्ञानिक पत्र प्रस्तुत कर संकडों की संख्या में उपस्थित प्रतिभागियों और छात्र–छात्राओं को नई तकनीक से अवगत कराया। संस्थान के फ़िज़ियोथेरापी विभाग की ओर से आज, ‘इवौलविंग पाराडिग्म्स इन न्यूरो–रिहैबिलिटेशन‘ विषय पर एक दिवसीय सम्मेलन सह–कार्यशाला का आयोजन किया गया था।
कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए, इंदिरागांधी इंस्टिच्युट औफ़ मेडिकल साइंसेज़ के निदेशक डा एन आर विश्वास ने कहा कि, आधुनिक चिकित्सा–विज्ञान में फ़िज़ियोथेरापी की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अनेक प्रकार की शारीरिक समस्याओं और रोगों के उपचार में इसकी आवश्यकता पड़ती है। इसलिए इसमें गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण बहुत आवश्यक है। प्रशिक्षण–संस्थानों में गुणवत्ता की जाँच और उनपर नियंत्रण के लिए, अन्य चिकित्सा परिषद की भाँति फ़िज़ियोथेरापी चिकित्सा परिषद की भी स्थापना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हेल्थ इंस्टिच्युट द्वारा आयोजित इस एक दिवसीय कार्यशाला से, जिसमे न्यूरो–रिहैबिलिटेशन पर विशेषज्ञों के वैज्ञानिक–पत्र प्रस्तुत किए जाएँगे, प्रतिभागियों को बहुत लाभ पहुँचेगा।
प्रसिद्ध नयूरोलौजिस्ट तथा इंदिरागांधी आयुर्वज्ञान संस्थान के पूर्व निदेशक डा अजय कुमार सिंह ने अपना वैज्ञानिक–पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि मस्तिष्क–आघात अथवा उससे संबंधित अन्य समस्यायों के कारण उत्पन्न हुई विकलांगता का उपचार और पुनर्वास,चिकित्सा–विज्ञान के समक्ष एक बड़ी चुनौती है, किंतु आधुनिक चिकित्सा–विज्ञान में निरंतर हो रहे शोध और तकनीकी विकास के कारण इसका उपचार और पुनर्वास संभव हुआ है। फ़िज़ियोथेरापी की भूमिका इसमें बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो रही है।
इंदिरा गाँधी आयुर्विज्ञान संस्थान के न्यूरो–सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डा केशव मोहन झा ने कहा कि, फ़िज़ियोथेरापी में नई तकनीक के प्रयोग ने पुनर्वास के क्षेत्र में क्रांति पैदा कर दी है। अब थेरापी के लिए अलग–अलग ‘रोबोट‘ का भी उपयोग किया जाने लगा है। पहले जहाँ लकवा–ग्रस्त मरीज़ों के बारे में यह मान लिया जाता था कि, अब इसमें कुछ भी नहीं किया जा सकता, अब यह माना जाने लगा है कि, ये रोगी भी ठीक हो सकते हैं। गुणवत्तापूर्ण जीवन जी सकते हैं।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए, संस्थान के निदेशक–प्रमुख डा अनिल सुलभ ने विकलांगों के पुनर्वास के क्षेत्र में विगत २७ वर्षों से संस्थान द्वारा किए जा रहे कार्यों की संक्षिप्त चर्चा की तथा कहा कि जिन दिनों लकवा–ग्रस्त रोगियों के संबंध में यह मान लिया जाता था की यह अब अपने पैरों पर कभी खड़ा नही हो सकता, उन दिनों एक नई संभावनाओं के साथ यह संस्थान खड़ा हुआ था और इसने ऐसे पीड़ितों को न केवल अपने पैरों पर खड़ा हीं किया, बल्कि चलने और दौड़ने लायक बनाया। जब पूरे देश में गिने–चुने चार मात्र केंद्रीय संस्थान थे, पुनर्वास–विज्ञान के क्षेत्र में देश के पहले संस्थान के रूप में यह संस्था सामने आई। समाज को सबसे पहले इसने हीं ‘विकलांगों का पुनर्वास संभव है‘, इस सूचना से अवगत और परिचित कराया था। उन्होंने आशा व्यक्त की कि बिहार के इन दोनों हीं राष्ट्रीय चिकित्सा संस्थानों, आई जी आइ एम एस तथा एम्स के सहयोग से इस संस्थान के द्वारा इस क्षेत्र में और भी बड़े कार्य संपन्न होंगे।
आरंभ में, कार्यशाला आयोजन समिति की सचिव और संस्थान के फ़िज़ियोथेरापी विभाग में सहायक प्राध्यापिका डा दर्शप्रीत कौर ने अतिथियों का स्वागत करते हुए, कार्यशाला के संबंध में विस्तृत जानकारी दी। धन्यवाद–ज्ञापन आयोजन समिति के अध्यक्ष डा अनूप कुमार गुप्ता ने किया।