महान स्वतंत्रता सेनानी और बिहार के निर्माता प्रो अब्दुल बारी का 70वाँ शहादत दिवस 28 मार्च को  है, आज ही के दिन  1947 को उनके सीने में दो गोलियां दाग़ कर हमसे हमेशा के लिए छीन लिया था.Abdul.bari

उमर अशरफ

बदलते दौर में हमारे शहीदों को याद करने का चलन जातीय या धार्मिक चश्में से देख कर किया जाने लगा, और इस तरह अनेक शहीदों को उनकी जाति या फिर उनके मज़हब तक समेट कर छोड़ दिया गया है.

लेकिन हैरत तो तब होती है कि कांग्रेस ने भी प्रोफ़ेसर अब्दुल बारी को भुला दिया है, जिसको ले कर लोगों मे बहुत ही ग़ुस्सा भी है.

प्रो० अब्दुल बारी को शहादत दिवस पर उन्हे याद करते हुए पत्रकार अशरफ अस्थानवी लिखते हैं :- एक बार अपने मेहरबां को याद तो कर लो. मनाओ खूब तुम जश्न-ए-बहारां ए चमन वालों.. मगर एक दिन चमन के बागबां को याद तो कर लो. वहीं आई. टी. प्रोफ़ेशनल मुस्तेजाब ख़ान अपने ग़ुस्से का इज़हार करते हुए लिखते हैं :- कांग्रेस हमेशा से संघी मानसिकता से लिप्त थी  मगर मुसलमानो के वोट ने उसे परदे में रहने पे मजबूर किया हुआ था।

जहानाबाद के रौशन शर्मा कहते हैं जिस शख़्स ने हिन्दू- मुसलिम विचारधारा से परे हट कर एकता कयाम की उसे पुण्य तिथी पर याद नहीं करना दुखद है. एम बीए ए फ़इनल ईयर के छात्र इंतख़ाब आलम बिहार प्रादेश कांग्रेस कमिटी के सदर अशोक चौधरी से सवाल करते हुए लिखते हैं :- जिसने बिहार में कांग्रेस को अपने कंधो पे ढोया उसे ही कांग्रेस में कोई श्रद्धांजलि देने वाला नहीं है.

 

जे एन यु के रिसर्च स्कॉलर शरजील ईमाम कहते हैं :- ये सब एक साज़िश के तहत हो रहा है. पूरे सिस्टम को अपने क़ब्ज़े मे ले कर चुन चुन कर एक ख़ास समुदाय के नायक को किनारे किया जा रहा है. वहीं मेकेनिकल इंजिनयर कामरान इब्राहीमी तीखे असफ़ाज़ मे लिखते हैं  आज भी जो बची खुची कांग्रेस है हमारे ही दम से है लेकिन कांग्रेस की रणनीति रही है कभी मुस्लिम नेतृत्व को न तो उभरने दिया जाए और न ही उनके.योगदान को लोगों के सामने आने दिया जाए .इसलिए आज के दिन एक मजदूर नेता ..एक आजादी के मतवाले को याद करना मुनसिब नही समझा.

एस एस सी की तैयारी कर रहे राहुल मिश्रा कहते हैं :- जिसने मज़दूरों के हक़ की लड़ाई लड़ी और देश सेवा के लिए ख़ुद को क़ुर्बान कर दिया को याद नही करना गलत बात है. सरकार को एैसा नही करना चाहिए था

. गांधी फेलो , पिरामल स्कुल आफ लिडरशीप से जुड़े शादान आर्फ़ी कांग्रेस को नसीहत देते हुए लिखते हैं : जिस तरीक़े से कांग्रेस ख़ुद को अब्दुल बारी साहेब से अलग कर रही है वह दिन दूर नहीं कि सरदार पटेल तथा बोस की विरासत जिस तरह अन्य दलों ने अपना लिया ठीक उसी प्रकार बारी साहब की सोंच तथा विरासत को भी गैर कांग्रेसी दलों द्वारा अपना लिया जाए , कांग्रेस को अपनी विरासत को बचाए रखने की भरसक कोशिश करनी चाहिए ।

इंगलैंड मे पोस्टेड डॉ ईसा सिद्दीक़ी लिखते हैं :- कांग्रेस एक अच्छी पर्टी रही है पर उसमे अब बड़ी तादाद मे राईट विंग लोग भी जुड़ चुके हैं जो मुसलिम के योगदान को लोगों के सामने आने देना चाहते हैं.

मास कॉम की तैयारी कर रहे उमर अशरफ़ ने भी बिहार प्रादेश कांग्रेस कमिटी के सदर अशोक चौधरी से सवाल करते हुए लिखते हैं :- जनाब अशोक चौधरी साहेब आज बिहार मे कांग्रेस का जो भी वजूद है वह मुसलमानो की वजह कर है पर आपको अपने ही सदर प्रो अब्दुल बारी की शहादात याद नही है. यह बिहार और बिहार कांग्रेस के लिए शर्मनाक है.

अब्दुल बारी के बारे में

प्रो अब्दुल बारी ने खिलाफ़त आन्दोलन से आज़ादी की लडाई की शुरुआत की थी ,फिर हर मोड़ पर कांग्रेस के साथ रहे चाहे नॉन को ऑपरेशन मूवमेंट हो या 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन , बिहार विधान सभा के स्पीकर भी रहे 1937 में और अपने आखिरी वक़्त में वो बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी के सदर (प्रेसिडेंट ) भी थे , शायेद उनसे नफरत करने वाले की वजह भी यही थी , 28 मार्च 1947 को फतुहा (पटना के क़रीब ) में उन्हें गोली मारी गयी थी तब वो जमशेदपुर से लौट रहे थे ,उन्हें बुलाया भी गाँधी जी ने था क्यूंक बिहार उस वक़्त नफरत की आग में जल रहा था और गाँधी जी इस बात को जानते थे के इस वक़्त अगर कोई पटना के आसपास के इलाके को कोई संभाल सकता है तो वो सिर्फ प्रो अब्दुल बारी है !

प्रो अब्दुल बारी की आखरी आरामगाह (क़बर ) पीरमोहानी पटना में है …..आज के दिन ही इन्हें शहीद कर दिया गया था. सारी दुनिया के मजदूर के ठेकदार साहब ये भी एक मजदूर नेता था …जब गोली मारी गयी थी तो जेब से सिर्फ चवन्नी निकली थी !

By Editor


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