उच्चतम न्यायालय ने व्यभिचार से संबंधित कानून की समीक्षा करने को लेकर आज सहमति जता दी। वर्तमान में इस अपराध के लिए केवल पुरुषों को ही सजा का प्रावधान है, महिलाओं के लिए नहीं। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने जोसेफ शाइन की याचिका सुनवाई के लिए मंजूर करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। शीर्ष अदालत ने नोटिस के जवाब के लिए चार सप्ताह का समय दिया है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश कलीश्वरम राज और सुविदत्त सुन्दरम ने याचिकाकर्ता का पक्ष रखते हुए दलील दी कि भारतीय दंड संहित (आईपीएस) की धारा 497 के प्रावधानों के तहत व्यभिचार को अपराध करार दिया गया है, लेकिन इसके तहत केवल पुरुषों को सजा दिये जाने का प्रावधान है, महिलाओं को नहीं।
न्यायालय ने कहा कि अपराध न्याय प्रक्रिया के तहत आरोपी पुरुष या स्त्री को समान नजरिये से देखा जाता है, लेकिन धारा 497 के प्रावधान लैंगिक समानता के सिद्धांत के खिलाफ है। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि जब जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं और उन्हें समानता का अधिकार प्राप्त है तो फिर इस मामले में महिलाओं को अपवाद में कैसे रखा जा सकता है।