राज्य में शराब के कारोबार में जबरदस्त अवैध कमाई हो रही है। एक अनुमान के मुताबिक मदहोशी के इस धंधे में हर साल 312 करोड़ रुपये की अधिक की कालाबाजारी होती है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि राज्य में कहीं भी देशी या विदेशी शराब या बियर के बोतल पर लिखे एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) के मुताबिक शराब नहीं मिलती है। शराब के ब्रांड, साइज और स्थान के हिसाब से रेट भी बदल जाता है। अगर महीने का हिसाब जोड़ें तो राज्य भर में देशी और विदेशी मदिरा की दुकानों से करीब 26 करोड़ तक की अवैध कमाई होती है।
कौशिक रंजन
उदाहरण के तौर पर देसी शराब की 200 ग्राम की पेट बोतल की सरकारी दर 25 रुपये और 400 ग्राम की 45 रुपये है, जबकि दोनों हर जगह निर्धारित मूल्य से 8-15 रुपये तक ज्यादा पर मिलती है। त्योहारों में इसकी कीमत मनमानी होती है। इसी तरह विदेशी शराब की भी बोतल पर लिखे एमआरपी से 20 से 80 रुपये तक महंगी शराब मिलती है। किसी-किसी ब्रांड में यह 100 रुपये तक महंगी होती है। विदेशी शराब तीन साइज में मुख्य रूप से मिलती है। तीनों साइज और ब्रांड के हिसाब अवैध कीमत भी लगती है। उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग के राहुल सिंह ने बताया कि पूरे मामले की जल्द ही विभागीय स्तर पर गहन समीक्षा की जायेगी। अधिक दाम लेने वालों पर सख्त कार्रवाई की जायेगी। इस मामले में हर स्तर पर पड़ताल शुरू होगी।
विभाग के संरक्षण में चलता है कारोबार
सालाना कारोबार को देखे, तो यह 312 करोड़ रुपये का होता है। इतनी बड़ी राशि प्रत्येक साल ब्लैक रेवेन्यू के रूप में बिहार में आती है। यह कारोबार उत्पाद विभाग समेत अन्य सरकारी महकमों की जानकारी और संरक्षण के बिना चलता हो, यह संभव नहीं है। सूत्र बताते हैं कि इसमें वसूली की हिस्सेदारी ‘ऊपर’ तक जाती है। कितनी ऊपर तक यह समझ से परे है।
कमाई का चक्कर
राज्यभर में देसी शराब की प्रत्येक महीने करीब 90 लाख लीटर, विदेशी की करीब 37 लाख लीटर और बियर की करीब 60 लाख लीटर खपत होती है। अब अगर अवैध वसूली के औसत को इस खपत के गुना कर लें, तो काली कमाई का सच सामने आ जायेगा। देशी शराब पर प्रति लीटर औसतन 10 रुपये की वसूली माने, तो यह महीने में नौ करोड़ होता है। इसी तरह विदेशी शराब पर औसतन 30 रुपये प्रति लीटर मानने पर यह 11 करोड़ रुपये और बियर पर औसतन 10 रुपये के अवैध शुल्क मानने पर यह 6 करोड़ रुपये प्रति महीने का होता है। अब इन्हें जोड़ने पर प्रत्येक महीने 26 करोड़ अवैध कमाई सामने आती है। यह औसत है, हकीकत इससे ज्यादा ही होगी।
एमआरपी से अधिक का नियम नहीं
नियमानुसार किसी विक्रेता को एमआरपी से अधिक दाम पर शराब नहीं बेचनी है। पकड़े जाने पर उसका लाइसेंस तक रद्द किया जा सकता है। लेकिन, यह चीज ही कुछ ऐसी है कि अधिक दाम लेने का विरोध करना नैतिकता के खिलाफ समझा जाता है। कारोबारी विभागीय कारिंदों के साथ सांठगांठ करके इसका नाजायज फायदा उठाते हैं। इसका न कहीं विरोध होता है और न ही कहीं सरकारी स्तर पर जांच या नियंत्रण की ही कोशिश की जाती है।
साभार- प्रभात खबर, पटना