बिहार में भाजपा को तार-तार करने का संकल्प लेने वाले नीतीश कुमार अब अपनी पार्टी को समेटे रखने के लिए कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। भाजपा से मिल रही चुनौती से अधिक पार्टी के अंदर के अंतरविरोध से वह ज्यादा परेशान हैं। पार्टी नेतृत्व और मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को लेकर कायम दुविधा के बीच जदयू-राजद के विलय की खबरों ने पार्टी की परेशानी और बढ़ा दी है। विलय को लेकर अभी कोई समय सीमा तय नहीं है, लेकिन समझा जा रहा है कि संक्रांति के बाद विलय की औपचारिक घोषणा की जा सकती है।
वीरेंद्र यादव
दोनों पार्टी के उच्चपदस्थ सूत्रों का दावा है कि देर-सबेर विलय तय है, लेकिन शर्तों व समझौतों पर सहमति नहीं बन पा रही है। लालू यादव विलय के बाद जीतनराम मांझी को सीएम के रूप में बनाए रखना चाहते हैं, जबकि नीतीश खेमा मांझी की जगह नीतीश को फिर सत्ता सौंपने के पक्ष में है। जबकि नीतीश कुमार चुनाव के पहले फिर से सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठना चाहते हैं। यही कारण है कि विलय की औपचारिक तिथि घोषित नहीं की जा रही है। इसी महीने विधान का सत्र भी होने वाला है। इस कारण किसी भी तरह की परेशानी से बचने के लिए विलय पर दोनों पक्ष अनिश्चय बनाकर रखना चाहता है।
नीतीश कुमार संपर्क यात्रा के दौरान मिले फीडबैक से हतप्रभ हैं। उन्हें इस बात अहसास नहीं था कि हालात इतने खराब हैं। लेकिन अब स्थिति उनके हाथ से निकल चुकी है। वैसी स्थिति में राजद के साथ रहने या राजद में विलय के अलावा कोई विकल्प नहीं है। लेकिन राजद खेमा अपने लिए सत्ता और संगठन में प्रभावी हिस्सेदारी व भागीदारी मांग रहा है। वैसे में विलय पर आम सहमति के बाद शर्तों और समझौतों पर मामला अटकता जा रहा है। विधानसभा सत्र के बाद और झारखंड चुनाव परिणाम के बाद विलय को अंतिम रूप देने के लिए लालू-नीतीश की बैठक हो सकती है। संभव है यह बैठक लालू यादव की पुत्री राजलक्ष्मी की शादी तक के लिए टल भी सकती है।
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