आपने कल पूरा दिन चैनलों पर जद यू प्रवक्ता शिवानंद तिवारी को यह कहते सुना होगा- “नरेंद्र मोदी बड़े लोकप्रिय नेता हैं’… “कभी बनारस तो कभी लखनऊ से भी इनके चुनाव लड़ने की बात होती है, लेकिन क्या गुजरात में उनकी जमीन उखड़ गई है, जो बाहर कहीं से चुनाव लड़ना चाहते हैं.….”
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन
जबकि सच्चाई यह थी कि शिवानंद ने कहा था- “भाजपा की नजर में नरेंद्र मोदी बड़े लोकप्रिय नेता हैं”…. “कभी बनारस तो कभी लखनऊ से भी इनके चुनाव लड़ने की बात होती है, लेकिन क्या गुजरात में उनकी जमीन उखड़ गई है, जो बाहर कहीं से चुनाव लड़ना चाहते हैं”.
दैनिक जागरण के पटना एडिशन ने शिवानंद तिवारी के दोनों व्कत्ब्यों को प्रथम पृष्ठ पर छापते हुए शीर्षक दिया है- “अधूरे बयान पर बवाल”.
जागरण की खबर का आशय यह है कि न्यूज चैनलों ने शिवानंद तिवारी के बयान के पहले चार शब्द यानी “ भाजपा की नजर में” एडिट कर दिया था.
चैनलों की यह हरकत ठीक वैसे ही जैसे फेसफुक पर कुछ बिगड़ैल और गैरजवाबदेह लोग कटरीना कैफ की बिकनी वाली तस्वीर से सर को गायब करके सोनिया गांधी का चेहरा चस्पा कर देते हैं. सोशल मीडिया की विश्वसनीयता नहीं होने के कारण लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते. लेकिन कुछ न्यूज चैनल भी सोशल मीडिया जैसी हरकतें करने लगें तो उनकी विश्वसनीयता भी सोशल मीडिया की तरह हो कर रह जायेगी.
आहत हुए शिवानंद
इस मामले से खुद शिवानंद तिवारी भी आहत हैं. वह नौकरशाही डॉट इन से कहते हैं, कुछ चैनल तो पत्रकारिता धर्म का निर्वाह करते हैं पर सब ऐसे नहीं हैं. इल्कट्रानिक मीडिया में कुछ शब्दों को एडिट कर देने मात्र से उसका अर्थ बदल जाता है, प्रिंट मीडिया में ऐसा आम तौर पर नहीं किया जाता. तिवारी कहते हैं “मैंने व्यंग्यात्मक लहजे में मोदी को लोकप्रिय कहा था पर उसे कुछ चैनलों ने आधाअधूरा दिखा कर हमारे कथन को उलट-लपट दिया”
टीआरपी के चक्कर में खबरों को सनसनीखेज बनाने की यह प्रवृत्ति खुद चैनलों के लिए घातक है. माना कि कुछ उत्साही या विकृत मानसिकता के पत्रकार ऐसी हरकतें करते हों पर यह मामला चैनलों के आउटपुट और इनपुट एडिटरों की नजरों से तो गुजरता ही है. वे भी ऐसी हरकतों का हिस्सा बनने लगें तो इससे बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है.
पिछले एक-डेढ़ दशक से भारत में न्यूज चैनलों की भीड़ इतनी बढ़ गयी है. एक दूसरे से आगे निकल जाने और ज्यादा दर्शक जुटाने के लिए वे ऐसी हरकतें करते हैं. आज की तारीख में दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा न्यूज चैनल भारत में हैं. लेकिन उनकी विश्वसनीयता अगर सोशल मीडिया की तरह हो जायेगी तो आखिरकार इसका खामियजा उन्हें ही भुगतना पड़ेगा.
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