शशि थुरूर क हिंदू-पाकिस्तान वाले बयान पर देश भर में बहस छिड़ गयी है. कुछ उनके पक्ष में कूद पड़े हैं तो कुछ उनकी आलोचना कर रहे हैं. लेकिन इमामुद्दीन अलीग अपने लेख में बता रहे हैं कि संघ व भाजपा के नेता,यहां तक कि अनेक केंद्रीय मंत्रियों के हालिया बयान व व्यवहार शशि थुरूर के आरोपों को सही साबित करते हैं.
1947 में दिल्ली की जामा मस्जिद में दी गई अपनी तक़रीर में कहा था ” अब हिंदुस्तान में बसने वाले मुसलमान एक ऐसी हुकूमत के रहमो करम पर हो गए हैं जो खालिस हिन्दू राज बन गई है।”
“हिन्दू राष्ट्र” का मुद्दा वैसे तो हमेशा चर्चा का विषय बना रहता है लेकिन अभी हाल ही में कांग्रेस के सीनियर लीडर शशि थरूर के बयान के बाद से यह मुद्दा बहस के केंद्र में आ गया है। जिसके बाद से बहुत से लोग भारत को अघोषित हिन्दू राष्ट्र साबित करने पर तुल गए हैं। हालाँकि शशि थरूर ने यह कहा है कि अगर 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी जीती तो देश का संविधान खतरे में पड़ जाएगा और भारत हिन्दू पाकिस्तान बन जाएगा। शशि थरूर के इस बयान में “2019 में बीजेपी जीती तो” के उल्लेख से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि यह पूर्ण रूप से एक राजनीतिक बयान जो चुनावी लाभ उठाने के लिए अल्पसंख्यकों को डराने के उद्देश्य से दिया गया है। लेकिन साथ ही यह भी सच है कि आज के भारत को “हिन्दू राज” से “हिन्दू राष्ट्र” बनाने की कोशिश की जा रह है.
“हिंदू राज” का मतलब हिंदुओं के प्रभुत्व वाली हुकूमत जैसा कि स्वतंत्रा के बाद से व्यावहारिक रूप से यही चला आ रहा है और जबकि हमारा संविधान लोकतान्त्रिक है.. यही बात मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अपनी स्पीच में कही थी। जबकि “हिन्दू राष्ट्र” का मतलब हिन्दू रूलिंग सिस्टम या हिन्दू संविधान के तहत चलने वाली सरकार होता है। आरएसएस और अन्य हिंदुत्ववादी संगठन लगातार प्रयास करने के बावजूद आजतक भारत को हिन्दू राष्ट्र नहीं बना सके। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इस दिशा में उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली है… बल्कि यूँ कहा जाए कि स्वतंत्रता के बाद से अबतक घटने वाली अनगिनत घटनाएं इस बात का सबूत हैं कि भारत को हिन्दू राज से हिन्दू राष्ट्र बनाने की कोशिश जारी है.
1947 में आज़ादी के तुरंत बाद भारत सरकार द्वारा सरकारी खर्चे पर सोमनाथ मंदिर का बनना, फिर 1995 में तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा द्वारा उसका लोकार्पण करना। 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी का क़त्ल किया जाना। 6 दिसंबर 1992 को सरकार की निगरानी में बाबरी मस्जिद को ढाया जाना। 1998 और 2014 में आरएसएस समर्थित बीजेपी का फुल बहुमत के साथ सत्ता में आना। स्वतंत्रता के बाद से अबतक हुए लाखों दंगों के कुसूरवारों और ज़िम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई न होना, बल्कि सरकार और प्रशासन द्वारा दंगाइयों को खुली छूट देना। 2013 में नरेंद्र मोदी के मंच पर दंगा आरोपी संगीत सोम और सुरेश राणा को सम्मानित किया जाना। देश भर में हुई मोब लिंचिंग की घटनाओं में भीड़ द्वारा मुसलमानों का क़त्ल किया जाना. हाल ही में केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा और गिरिराज द्वारा दंगा और लिंचिंग के सज़ा याफ्ता मुजरिमों और आरोपियों को सम्मानित किया जाना आदि। ऐसी कई घटनाएं हैं जो यह सिद्ध करती हैं कि भारत को हिन्दू राष्ट्र बनने की कोशिश हर स्तर पर की जा रही है. लेकिन जबतक इस देश का संविधान अपने लोकतान्त्रिक मूल्यों पर कायम है..लिहाज़ा अभी हिंदुस्तान को हिन्दू राष्ट्र नहीं कहा जा सकता क्योंकि लोकतंत्र के तीनों स्तंभ न्यायपालिका , कार्यपालिका और विधायिका संविधान के अनुसार ही चलते हैं।
यह अलग बात है कि हिंदुत्ववादी ताक़तों ने इतना ज़हर फैला दिया है कि समाज और सरकार का कोई भी हिस्सा इस प्रदूषित सोच से सुरक्षित नहीं रहा।