सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बिहार सरकार के वकील को कड़ी फटकार लगाई और पूछा कि आरजेडी नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन की जमानत रद्द कराने के लिए अब इतना उतावलापन क्यों दिखाया जा रहा है।
जन सत्ता में उत्कर्ष आनंद की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस पी सी घोष और जस्टिस अमित्व रॉय की खंडपीठ ने यह भी पूछा कि जब पटना हाईकोर्ट में मामला था तब आप कहां थे? जज ने टिप्पणी की कि अभी वो बेल पर स्टे ऑर्डर नहीं दे सकते।
चंद्रकेश्वर प्रसाद की तरफ से मामले की पैरवी कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने भी जब कोर्ट से अनुरोध किया कि शहाबुद्दीन के बेल पर तुरंत रोक लगे तो कोर्ट ने उन्हें भी कहा, “हमलोगों ने केस के तथ्यों को देखा है और अभी इस पर हम कोई स्थगनादेश नहीं दे सकते।” प्रशांत भूषण उन तीन मृत युवकों के पिता की पैरवी कर रहे हैं जिनकी हत्या का आरोप मोहम्मद शहाबुद्दीन पर है।
सोमवार को मामले की सुनवाई शहाबुद्दीन के वकील राम जेठमलानी की ओर से केस में सुनवाई स्थगित करने की अर्जी से शुरु हुई। जेठमलानी के सहयोगी ने कहा कि जेठमलानी उपलब्ध नहीं हैं और उपयुक्त बचाव के लिए मामले के बड़े केस रिकॉर्ड को पढ़ने की जरूरत है, इसलिए उन्हें थोड़ा वक्त दिया जाय। पीठ ने कहा, ‘चूंकि मामले में आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं इसलिए दोनों पक्षों की बात सुने बगैर हम आदेश पारित नहीं करेंगे। हम इसे बुधवार (28 सितम्बर) के लिए तय कर रहे हैं।’ शहाबुद्दीन की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील शेखर नफडे ने कहा कि उनका मुवक्किल मीडिया ट्रायल से पीड़ित है और उसे अपना मामला प्रस्तुत करने के लिए पर्याप्त अवसर दिया जाना चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा, ‘हर दिन यह व्यक्ति समाज के लिए खतरा है क्योंकि शहाबुद्दीन 10 मामले में दोषी है। उसके खिलाफ 45 आपराधिक मामले लंबित हैं। दो मामलों में उसे आजीवन कारावास की सजा मिली हुई है।’ शहाबुद्दीन को सात सितम्बर को पटना उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी थी। इसके बाद दस सितम्बर को वह भागलपुर जेल से रिहा हो गए थे। वह दर्जनों मामलों में 11 वर्ष से जेल में बंद थे। भूषण के हलफनामे का बिहार की नीतीश कुमार नीत सरकार ने समर्थन किया जिसमें राजद एक बड़ा सहयोगी दल है।
राज्य सरकार के वकील ने पीठ से कहा, ‘यह अत्यंत महत्वपूर्ण मामला है। मामले में केवल एक गवाह है जो बुजुर्ग पिता है जिसके तीन बेटे मारे जा चुके हैं और अगर उनको (चंद्रकेश्वर प्रसाद) कुछ होता है तो फिर दोनों मामले खत्म हो जाएंगे।’ हलफनामे से क्षुब्ध पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने में राज्य सरकार की तरफ से हुए विलंब पर सवाल खड़ा करते हुए कहा, ‘हम जानते हैं कि मामले में आपने क्या जरूरत दिखाई है।’