शहीदों के खून पर सियासत कर और कितना नीचे गिरेगी भाजपा !
शहीदों का खून हमारी सरहदों की हिफाजत और राष्ट्र की संप्रभुता की जमानत देते हैं. हमारे जवान हम सबको गर्वान्वित करते हैं. लेकिन अगर शहीदों के खून और उनके बलिदान को सियासत का आधार बना लिया जाये तो यह उनका अपमान है. क्योंकि हमारे जवान अपने जीवन की आहुति किसी राजनीतिक दल के लिए नहीं देते, राष्ट्र की अस्मिता के लिए देते हैं.
लेकिन पिछले दिनों एक शर्मनाक बयान कर्नाटक भाजपा के अध्यक्ष बीएस यदियुरप्पा की तरफ से आया. उन्होंने कहा,”पाकिस्तान में आतंकी कैंपों पर भारत के अचानक किए गए हमले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में लहर बनी है और इससे पार्टी को आगामी लोकसभा चुनाव में राज्य में 28 में 22 सीटें जीतने में मदद मिलेगी. येदियुरप्पा ने कहा, ‘‘दिनों-दिन बीजेपी के पक्ष में लहर बनती जा रही है.” इतना ही नहीं चित्रदुर्ग में संवाददाताओं से उन्होंने कहा, इसने नौजवानों में जोश भर दिया है. इससे हमें (कर्नाटक में) लोकसभा की 22 से ज्यादा सीटें जीतने में मदद मिलेगी.’ उनके इस बयान को टीवी चैनलों ने दिखाया भी.
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शहीदों के खून पर घिनौनी सियासत
यदियुरप्पा इस बयान के बाद चाहे जो भी सफाई दें पर उनके बयान की हकीकत हर कोई समझ रहा है. ऐसा नहीं है कि यदियुरप्पा भाजपा के ऐसे अकेले नेता हैं जो हमारे सैनिकों के बलिदान को राजनीति का घिनौना हथियार बनाया हो.
जनसत्ता के मुताबिक गुजराता भाजपा के नेता भरत पांड्या ने कहा कि इस समय (पुलवामा हमले के बाद) देश में राष्ट्रवाद की लहर चल रही है और अब इसे वोट में तब्दील करने की जरूरत है. ये बाते उन्होंने बूथ लेवल वर्कर्स के सम्मेलन नें कहते हुए उन्हें आगाह किया कि शब्दों के इस्तेमाल में सावधानी बरतनी होगी.
इतना ही नहीं इस काम में पीएम नरेंद्र मोदी भी एक हद तक शामिल हैं. अभी हाल ही में एस राजनीतिक रैली के मंच पर मोदी भाषण दे रहे थे और उस मंच के बैकग्राउंड में 44 शहीदों की तस्वीरें लगी हुई थीं.
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ध्यान रखने की बात है कि पुलवामा आतंकी हमला, ऐसे समय में हुआ है जब देश लोकसभा चुनाव की उलटी गिनती कर रहा है. इन हमलों के बाद भाजपा ने दर्जनों राजनीतिक रैलियां की हैं और अब भी लगातार कर रही है. उसने शहीदों के सम्मान में अपने एक भी राजनीतिक कार्यक्रम नहीं रोके. जबकि, जिस दिन आतंकी हमले की खबर आई उस दिन कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस को शहीदों की श्रद्धांजलि सभा में बदल कर एक आदर्श पेश कर दिया.
राष्ट्रवाद की भावना का राजनीतिक लाभ के घिनौने इस्तेमाल की नजीरें दूसरे विश्व युद्ध के तौर पर सामने आ चुकी हैं जब जर्मनी में हिटलर ने राष्ट्रवाद की भावना को उभार कर रूस पर हमला कर दिया था. और इस युद्ध के परिणाम को दुनिया जानती है. इसमें लाखों जर्मनी सैनिकों को जान तो गंवानी पड़ी लेकिन उस देश का कोई भला नहीं हुआ.
तो सवाल यह है कि क्या हमें पुलवामा आतंकी हमले और उसके बदले पाकिस्तान पर हुए हवाई हमले से उपजे राष्ट्रवाद की भावना को हमारे देश की जनता इस तरह राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस्तेमाल होने देगी? हमारे देश की जनता को इस पर गंभीरता से सोचने और सचेत रहने की जरूरत है.
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वास्तविक मुद्दे को भूलना खतरनाक
इस मामले में दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि योद्धोन्माद की इस स्थिति से देश के बुनियादी और रियल इश्यु को पर्दा में डालने की साजिश हो रही है. लगातार बढ़ती बेरोजगारों की फौज, भ्रष्टाचार, भारत से हजारों करोड़ रुपये ले कर भाग जाने वाले दौलतखोर लुटेरों की वापसी में सरकार की असफलता, काला धन के बढ़ते अम्बार, नोटबंदी से उपजी भयावह आर्थिक संकट सरीखे मुद्दे ही असल मुद्दे हैं जो देश की और देश की जनता के भविष्य को परिभाषित करेंगे.
लिहाजा राष्ट्रवाद की उपजी लहर और योद्धोन्माद को अगर राजनीति का मुद्दा बनाने की कोशिश हो रही है तो इससे ओछी बात और क्या हो सकती है?
लोकतंत्र में सरकारें आती और जाती रहती हैं. पर राष्ट्र एक स्थाई तत्व है. राष्ट्र की वास्तविक समस्याओं के समाधान पर बहस हो. वास्तविक मुद्दे चुनावी मुद्दें बनें. इसके लिए विपक्ष की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. विपक्ष ने पुलवामा हमले के बाद अब तक जो भूमिका निभाई है वह सराहनीय है लेकिन उसे ध्यान रखना होगा कि पुलवामा आतंकी हमले पर राजनीति करने वालों को बेनकाब करे. तभी देश और देश की जनता का भला होगा.