चीन और पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंद्वी देशों से घिरे भारत की वायु सेना लड़ाकू विमानों की कमी का तो सामना कर ही रही है। इन्हें उड़ाने के लिए उसके पास पायलट भी पूरे नहीं हैं। रक्षा मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति ने हाल ही में दोनों सदनों में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वायु सेना लड़ाकू विमानों के स्कवैड्रन के मामले में तो पिछड़ ही रही है। उसका पायलट -कॉकपिट अनुपात भी स्वीकृत संख्या से कम है। उसके पास हर विमान के लिए एक-एक पायलट भी नहीं हैं।
संसदीय समिति की रिपोर्ट में खुलासा
वायु सेना के लड़ाकू विमानों के लिए पायलट-कॉकपिट अनुपात की स्वीकृत संख्या 1.25:1 है यानि हर एक विमान के लिए 1.25 पायलट होने चाहिए। लेकिन अभी यह एक से भी कम यानि 0.81 है। परिवहन विमानों के लिए स्वीकृत अनुपात 1.5 और हेलीकाप्टरों के लिए 1 पायलट का है। रिपोर्ट के अनुसार लड़ाकू विमानों के पायलटों की संख्या के मामले में चीन और पाकिस्तान दोनों भारत से आगे हैँ। अमेरिका में यह अनुपात 2:1 और पाकिस्तान में 2.5:1 है। यदि भारत को फ्रांस से हुए समझौते के तहत अगले दो वर्षों में 36 राफाल विमान मिल जाते हैं तो यह अनुपात और कम हो जायेगा।
समिति का यह भी मानना है कि विमान दुर्घटनाओं की बढ़ती घटनाओं का एक कारण यह भी हो सकता है। समिति ने इस बात का गंभीरता से संज्ञान लिया है कि लड़ाकू विमानों के स्कवैड्रन स्वीकृत संख्या से कम हैं साथ ही इन्हें उड़ाने के लिए पायलट भी पूरी संख्या में नहीं होने से वायुसेना की संचालन क्षमता प्रभावित हो रही है। युद्ध के परिप्रेक्ष्य में यह और गंभीर स्थिति का संकेत देती है। समिति ने कहा है कि यह स्थिति सुधरनी चाहिए और रक्षा मंत्रालय को इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। उसने कहा है कि वायु सेना के सभी तरह के विमानों के लिए पायलट की संख्या पर ध्यान दिये जाने तथा हर संभव कदम उठाने की जरूरत है।