संत लाल यादव और मुन्ना शुक्ला के रिश्ते हाल तक सलामत थे पर बात जैसे भी बिगड़ी हो,सच्चाई यह है कि बिहार का कोई दबंग सात करोड़ रंगदारी मांगने की कूवत नहीं रखता और तो और इतनी रकम देने वाले भी बिरले ही हैं.अपराध और अंडरवर्ल्ड की गुत्थियों पर बारीक नज़र रखने वाले ज्ञानेश्वर इस मुद्दे के बहाने कुछ और पहलुओं को भी रेखांकित कर रहे हैं.
काफी समय के बाद रंगदारी की मांग फिर से बिहार की सुर्खियों में है. केन्द्र में जेल में बंद जदयू के पूर्व विधायक मुन्नार शुक्ला हैं. दो करोड़ से शुरु हुई कहानी सात करोड़ की मांग तक जा पहुंची है .समय के हिसाब से यह चार नवंबर को जदयू की आयोजित होने वाली रैली से जुड़ गया है. मीडिया विशेषकर इलेक्ट्रानिक हल्लाब बोल की भूमिका में है. विपक्ष को भी मुद्दा मिल गया है.
शिकायती संत लाल यादव हैं,जोकि मुन्ना शुक्ला के प्रभाव वाले क्षेत्र में एक शैक्षणिक संस्थाल का निर्माण करा रहे हैं. लेकिन पूरे मामले में मुझे झोल भी दिख रहा है. पुलिस ने प्रारंभिक जांच के आधार पर आरोपों की पुष्टि की है,साथ में विस्तापरित जांच की आवश्यलकता भी महसूस की है. बिहार के अंडरवर्ल्ड और इनके किरदारों की हैसियत को मैंने बहुत करीब से जाना है. संत लाल यादव की संपदा को भी हद तक जानता हूं. मांग हुई होगी,इससे असहमत नहीं. पर सात करोड़ ,यह नहीं मान सकता. और वह भी अधिकार रैली के खर्चे के नाम पर,हजम नहीं होता.
बिहार के अंडरवर्ल्ड के जितने भी डान अब तक हुए,मैं नहीं मानता कि उनमें से कोई भी सात करोड़ की मांग करने की कूवत रखता है. सात करोड की धन राशि कोई ऐसे दे भी नहीं देता. शुक्र है कि बिहार में अभी अपहरण इंडस्ट्रीत बंद है,लेकिन जिन दिनों में यह पूरे फार्म में था,तब भी सात करोड़ की फिरौती नहीं वसूली जा सकी .
मैं बहुत सारे धनाढ्यों और उनके कारोबार को भी जानता हूं,सो इसका भी पता है कि सात करोड़ अदा करने की क्षमता वाले भी गिनती भर के हैं. फिर संत लाल यादव तो हाल के दिनों के निकले तारे हैं,सितारा अभी बनना है.
मुझे फीडबैक तो यह भी है कि दोनों के रिश्ते् कुछ दिनों पहले तक सलामत ही थे. दोनों एक-दूसरे के मददगार बने थे. बात कहां बिगड़ी,पुलिस की विस्तानरित जांच रिपोर्ट में इसका राजफाश हो सकता है. बात मुकदमे तक इसलिए पहुंच गई,क्योंबकि मुन्ना् शुक्ला का गुस्सात सातवें आसमान पर जा पहुंचा. गुस्सा जान पर न आ बने,इसलिए रिपोर्ट दर्ज हो गई. अधिकार रैली निकट होने के कारण हंगामा मच गया. स्वयं नीतीश कुमार को जांच का आदेश देना पड़ा.
बिहार में हुई बहुत रेला-रैली को मैंने करीब से देखा है. लालटेन और तेल पिलावन रैली की याद भी है. अधिकार रैली की तैयारियों को देख एक समानता होर्डिंग के कब्जों पर दिख रहा है. पूर्व की भांति किस्म –किस्म के जीव-जंतु सड़कों और पोस्ट र-बैनर पर आ गये दिखते हैं. जिनका नाम ही काफी है,वे बड़े रुप में मौजूद हैं. रैली कोई तमाशा न बन जाये,इसका ख्याल सतर्कता से जदयू को रखना होगा.
मुन्ना् शुक्ला प्रकरण को छोड़ दें,तो जानने वाले किसी धनाढ्य से अब तक यह जानकारी नहीं मिली है कि रैली को किसी नेता / डान का फोन बड़ी राशि को चुकता करने का आया है. हां,मैंने कई सामान्य किस्मप के विधायकों को यह विलाप करते जरुर जाना है कि माल तो अफसर कमा रहे हैं,खर्चे का भार वे उठा रहे हैं. यह स्वीकारने में भी संकोच नहीं कि एनडीए-1 की तुलना में एनडीए-2 की पुलिसिंग बेहद कमजोर है.फिर भी वे दिन अभी वापस नहीं लौटे हैं कि मोबाइल पर किसी गुमनाम नंबर से फोन आने पर कंपकंपी छूटने लगे.
सच यह भी है कि न सिर्फ मुन्ना शुक्लास,बल्कि सभी डान के पास जेलों में फोन अब भी है. हां,लेकिन जेल से रात में घर चले जाने व दिन में मार्कट जाकर गदर काटने की छूट अब नहीं है. आपराधिक-सह-राजनीतिक बंदियों में यातना तो सर्वाधिक शहाबुद्दीन ही भोग रहे हैं.
चार नवंबर की रैली शांति से हो,नीतीश कुमार भी चाहते होंगे. जिलों की यात्रा में उन्हेंक विरोध का सामना करना पड़ा है. विरोध रोकने को जो तरीका पुलिस ने अपनाया,वह लोकतांत्रिक नहीं था. वैसे भी गुजरात के नतीजों के बाद समीकरण और मुद्दे बदलेंगे,इसलिए बहुत हो-हल्लाह की अभी जरुरत भी नहीं है.
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