नालंदा जिले के राजगीर का ऐतिहासिक महत्व है। गौतमबुद्ध से लेकर महावीर तक का जीवंत संबंध राजगीर से रहा था। पहाडि़यों की तलहटी में बसा राजगीर का प्राकृतिक सौंदर्य निराला है तो राजनीतिक रंगत भी विविधताओं से भरा हुआ है। वर्तमान राजनीति का प्रशिक्षण केंद्र बन गया है राजगीर, तो बगावत के स्वर भी यहीं से फुटे हैं।
वीरेंद्र यादव
15 से 17 जुलाई यानी तीन दिनों तक हमने भी राजगीर में प्रवास किया। एक पार्टी का राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर कवर करने गया था। इस दौरान राजगीर के राजनीतिक चरित्र को करीब से समझने का मौका मिला। राजगीर को देखने और समझने का मौका मिला। राजनीति रूप से संवेदनशील राजगीर पत्रकारिता की लिहाज से उपेक्षित है। प्रखंड स्तरीय रिपोर्टर ही वहां कवर करते हैं। जब किसी पार्टी का बड़ा कार्यक्रम होता है तो बिहारशरीफ से पत्रकार आते हैं। बिहारशरीफ से राजगीर की दूरी करीब 20 किलो मीटर है। कई बार पत्रकारों की पूरी टोली पटना से जाती है।
बगावत के स्वर
राजनीतिक चिंतन, प्रशिक्षण शिविर और कार्यकर्ता सम्मेलन के लिए मजबूत पार्टियों के लिए राजगीर पसंदीदा जगह है। सरकार बनाने से लेकर सरकार बदलने तक संकल्प वहीं गढ़ा जाता है। नीतीश के खिलाफ उपेंद्र कुशवाहा और शिवानंद तिवारी ने राजगीर में ही बगावत की थी। उपेंद्र कुशवाहा ने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का सवाल उठाया था तो शिवांनद तिवारी ने नरेंद्र मोदी की सामाजिक ताकत की अनदेखी के खतरे से आगाह किया था।
शक्ति का प्रदर्शन
भाजपा ने किला मैदान में सत्ता का मंत्र अपने कार्यकर्ताओं को दिया था तो राजद ने भी अपनी खोयी शक्ति को फिर से संगठित करने का संकल्प राजगीर में ही दुहराया। पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी ने राष्ट्रीय कार्यकर्ता शिविर राजगीर में आयोजित कर बड़ी पार्टियों के समानांतर खुद को खड़ा करने का प्रयास किया है।
सुगम आवागमन
आखिर राजगीर में वह कौन सी ताकत है कि सभी पार्टियां सत्ता, संगठन और शक्ति विस्तार का संकल्प प्राकृतिकवादियों के बीच दुहराना चाहती हैं। इस संबंध में जानकारों का मानना है कि राजगीर का ऐतिहासिक महत्व भी पार्टियों और कार्यकर्ताओं को आकर्षित करता है। बौद्ध और जैनधर्म के अनुयायियों के लिए कई धार्मिक जगह यहां पर हैं। इसका पर्यटन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। यही कारण की सरकार राजगीर को बराबर प्राथमिकता में रखती है और पर्यटकीय सुविधाओं का पूरा ख्याल रखती है। पर्यटन के कारण बड़ी संख्या में होटल और रेस्टोरेंट भी हैं। छोटा शहर होने के कारण सभी सुविधाएं कम क्षेत्रफल में मौजूद हैं। इस कारण कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने में कार्यकर्ताओं को परेशानी नहीं होती है। फिर करीब पटना से 100 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। इस कारण पटना से सुबह कार्यक्रम के लिए निर्धारित समय पर पहुंचना और शाम को लौट आना भी आसान है।
कन्वेंशन सेंटर का आकर्षण
संभावना और बगावत की धरती राजगीर इतिहास से लेकर वर्तमान तक सत्ता का शिखर और क्षरण को करीब से देखा है। राजगीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर के कारण भी राजगीर को नयी पहचान मिल रही है। अब अंतराष्ट्रीय विचार मंथन भी शुरू हो गया है। उम्मीद करनी चाहिए कि राजगीर की महत्ता दिन पर दिन और बढ़ती जाएगी।