गणतंत्र दिवस के अवसर पर संविधान की प्रस्तावना को सरकार ने जिस तरह से छेड़-छाड़ करने का दुस्साहस किया वह देश के पिछड़ों, दलितों आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के समानता के अधिकार पर हमला है.
फरह साकेब
ये बात अब सर्वविदित हो चुकी है की गणतंत्र दिवस के अवसर पर सुचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार की तरफ से गणतंत्र दिवस की वर्षगांठ पर अखबारों में जो सरकारी विज्ञापन दिए गए उसमें बहुत ही खामोशी के साथ संविधान की मूल प्रस्तावना के साथ छेड़ छाड़ किया गया और धर्मनिरपेक्ष समाजवाद शब्द को हटा दिया गया गणतंत्र दिवस के दिन अखबारों में छपे एक विज्ञापन (विज्ञापन नंबर DAVP22201/13/ 0048/1415 ) सरकार की तरफ से अंग्रेजी में ये लिखा गया है “””We the people of India, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN DEMOCRATIC REPUBLIC….”जबकि संविधान की के अनुसार इस पंक्ति की वास्तविकता “‘WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC and to secure to all its citizens…”””है और इस संबंध में इस मामले की लीपापोती करने के उद्देश्य से केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन राठौर ने तर्क देते हुए कह रहे हैं के सरकार पहली प्रस्तावना मतलब पैंसठ वर्ष पुरानी प्रस्तावना वर्षगांठ मना रही है जबकि ये दोनों शब्द धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद 1976 में संविधान के 44 वें संशोधन के बाद संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए हैं।
जबकि ये तर्क इतना खोखला है के कोई भी व्यक्ति आसानी से सब कुछ समझ सकता है और इसमें भी कोई संदेह नहीं की ये एक सुनियोजित तरीके से किया गया है ।
संघ परिवार के जनबल और कॉर्पोरेट के धनबल की ताक़त से बहुत ही सुनियोजित तरीके से समाज को सांप्रदायिक आधार पर विखंडित करते हुए जब से संघ प्रचारक एवं स्वयंसेवक नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आरएसएस ने अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा का मुखैटा पहन कर केंद्र की सत्ता प्राप्त की है उसी दिन से आरएसएस जो विगत नब्बे साल से अपने मूल उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अब तक छटपटा रहा था, अपने उद्देश्य की तरफ तीव्रता से बढ़ रहा है.
दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों पर निशाना
भारतीय इतिहास परिषद की कुर्सी से ले कर मानव संसाधन विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय तक में संघ से जुड़े लोग शीर्ष पदों पर बिठाए गए हैं और इन सब के नेतृत्व में संघ के मूल उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए फैसले लिए जा रहे हैं. संघ का मूल उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र की स्थापना मनुस्मिर्ति उसका संविधान और मूलतः एक राजा एक धर्म एक झंडा पर आधारित राष्ट्र है, जहां दलितों, आदिबासियों और अल्पसंख्यकों के अधिकार सुरक्षित नहीं रह सकते.
ये पूरा देश जानता है जिस दिन भारत की संविधान सभा ने भारत के लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद और समता की नीवं पर पर भारतीय संविधान की इमारत खड़ी की थी उसी दिन हिन्दू महासभा ( तत्कालीन आरएसएस ) ने संविधान को नकारने की घोषणा करते हुए उसकी जगह मनुस्मृति को भारतीय संविधान बनाने की मांग की थी. संघ के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनाइज़र ने 30 नवम्बर 1949 में अपने सम्पादकीय में लिखा था कि मनुस्मृति इस देश के लिए सबसे उचित संविधान है। आज जब संघ का राजनितिक रूप भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्तासीन है तो संघ अपने आदर्शपुरुषों द्वारा संघ की स्थापना के उद्देश्य के साथ अपने पैर पसार रहा है। मिडिया के द्वारा अच्छे दिनों का ढिंढोरा पीटा जा रहा है और सब कुछ बहुत ही सुनियोजित तरीके से हो रहा है और धीरे धीरे हो रहा है और राष्ट्रहित का चोला ओढ़ कर राष्ट्रवाद के नाम पर हो रहा है। ये कौन नहीं जानता कि भाजपा का राष्ट्रवाद कथित सांस्कृतिक आधार से परिभाषित होता है सीधे शब्दों में अगर कहा जाये तो भाजपा के राष्ट्रवाद का अर्थ पुरातन ब्रह्मणी संस्कृति है जो अपने आप में आज तक एक विवादस्पद धारणा है.
इसके अनुसार समाज के दब कुचले, आदिवासी, अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यकों की संस्कृति और परम्परा के लिए कोई जगह नहीं है. ये बात सभी को समझनी चाहिए अगर कोई ” राष्ट्रवाद ” धार्मिक संस्कृति पर खड़ा होगा तो उसमें उन लोगो के लिए कोई जगह नहीं होगी जो उस संस्कृति का हिस्सा नहीं होंगे…उसमें बहुत से लोगो का स्थान उस सांस्कृतिक मान्यता के अनुसार श्रेणी क्रम में ऊपर या निचे तय हो जायेगा।
आज जिस तरह संविधान की मूल प्रस्तावना के साथ छेड़ छाड़ की गयी उसे नज़रअंदाज़ कर देना किसी तौर उचित नहीं होगा क्योंकि इसके साथ ही मोदी सरकार की खतरनाक मंशा उजागर हो चुकी है और देश के प्रधानमन्त्री खुद भी विदेश में भारतीय सेक्युलरिज़्म का मखौल उड़ा चुके हैं.
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