राज्यपाल रामनाथ कोविन्द ने साहित्य को समाज का दर्पण होने के साथ-साथ पथ-प्रदर्शक बताया और कहा कि साहित्य का सृजन करने वाले साहित्यकार आम इंसान लोगों की तुलना में कहीं अधिक संवेदनशील होते हैं। श्री कोविन्द ने पटना में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के 37वें अधिवेशन का औपचारिक उद्घाटन करने के बाद आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि साहित्यकारों में एक आम इंसान से कहीं ज्यादा संवेदनशीलता होती है और उनमें अनुभवों, भावों और विचारों को अभिव्यक्त करने की ज्यादा कुशल और प्रभावकारी क्षमता भी होती है।
उन्होंने कहा कि समाज और राष्ट्र के प्रति उनकी भूमिका भी अन्य वर्गों से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। साहित्यकार किसी विषय को लेकर ज्यादा स्वस्थ और तटस्थ भाव से सही रूप में सोच सकते हैं और सबको सही रास्ते पर चलने को अभिप्रेरित कर सकते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि साहित्य समाज के दर्पण के रूप में केवल समाज के क्रिया-कलापों की छवि मात्र प्रस्तुत नहीं करता, बल्कि समाज का पथ-प्रदर्शक भी होता है। राज्यपाल ने कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचंद को उद्धृत करते हुए कहा कि हमारे कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा, जिसमें उच्च चिन्तन हो, स्वाधीनता का भाव हो, सौन्दर्य का सार हो सृजन की आत्मा हो, जीवन की सच्चाइयों का प्रकाश हो और जो गति, संघर्ष और बेचैनी पैदा करे। उन्होंने कहा कि गतिशील और प्रगतिमूलक मनुष्य और उसका समाज ही मानव सभ्यता की दौड़ में अपनी पहचान बना पाते हैं।
सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए गोवा की राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा ने हिन्दी को हृदय की भाषा बताया और कहा कि सूचना क्रांति के मौजूदा दौर में यह देखना होगा कि इसकी प्रासंगिकता कैसे बनी रहे। कार्यक्रम को राज्यसभा सांसद रवीन्द्र कुमार सिन्हा और सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ ने भी सम्बोधित किया।