दोपहर करीब एक बजे हम विधान मंडल परिसर में पहुंचे। कुछ साथियों के साथ हम काउंसिल के पोर्टिको से होते हुए सदन की ओर बढ़े रहे थे। इसी दौरान सुरक्षाकर्मी ने हमें रोकते हुए पूछा- आपका काउंसिल का कार्ड कहां है। हमने कहा कि आज काउंसिल का कार्ड घर में छूट गया है। उन्होंने हमें आगे बढ़ने से मना करते हुए कहा कि आपको पहचान रहे हैं। आप बराबर आते हैं। लेकिन अभी आपके पास काउंसिल का कार्ड नहीं है। इसलिए परिसर के अंदर नहीं जा सकते हैं। हम उनकी बात मानते हुए सीढ़ी से नीचे उतर आये।
वीरेंद्र यादव
इसके बाद हम विधान सभा की पोर्टिको की ओर बढ़े। अंदर के गलियारे से होते हुए काउंसिल के प्रेस रूम में पहुंचे। काफी देर बैठने के बाद उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी के चैंबर में गये। उनसे कई मुद्दों पर चर्चा हुई। करीब 1.55 बजे उपमुख्यमंत्री के कक्ष से बाहर निकलकर सत्ता पक्ष की लॉबी में गये तो तीन पार्षद बैठे थे। तब तक सदन की शुरुआत की घंटी बजने लगी थी। वहां से हम विपक्ष की लॉबी में पहुंचे तो दो सदस्य मौजूद थे। घंटी बजने के बाद सदन की कार्यवाही में शामिल होने चले गये। वहां से निकलकर हम वापस विधान सभा की ओर जाने के लिए ऊपर के गलियारे में गये तो गेट बंद था। फिर लिफ्ट से वापस आये और नीचे के गलियारे की ओर बढ़े। इस दौरान देखा कि विधान परिषद के कई वरीय सदस्य सदन की ओर लगभग भागते हुए जा रहे हैं। हमें हड़बड़ी की वजह समझ में नहीं आयी। हम विधान सभा की सत्ता पक्ष की लॉबी में थोड़ी देर बैठने के बाद प्रेस रूम में पहुंचे। प्रेस रूम में चर्चा के दौरान पता चला कि विधान परिषद में कोरम के अभाव में सदन की कार्यवाही निर्धारित समय से सात मिनट विलंब से यानी 2 बजकर 7 मिनट पर शुरू हुई। दस मिनट तक घंटी बजती रही, जबकि घंटी कार्यवाही शुरू होने के पहले सिर्फ 5 मिनट बजती है। यह स्थिति तब आयी जबकि हाल ही में एनडीए और भाजपा के विधायक दल की अलग-अलग हुई बैठक में सत्र के दौरान सदस्यों की उपस्थिति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया था। इस बीच, परिषद के आधिकारिक सूत्रों ने कोरम के अभाव में सदन की कार्यवाही शुरू होने में विलंब की पुष्टि नहीं की है।
उधर, विलंब का असर विपक्षी दल पर भी दिखा। विधान सभा में भोजनावकाश के बाद कार्यवाही शुरू हुई तो पुलवामा के शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि स्वरूप आज दिनभर सदन की कार्यवाही स्थगित करने की मांग विपक्ष कर रहा था। मांग नहीं माने जाने पर विपक्ष ने कार्यवाही का बहिष्कार किया। लेकिन देर से पहुंचने के कारण विपक्षी दल के कम से कम तीन सदस्य सीधे सदन में पहुंच गये। अंदर जाने पर उन्हें स्थिति समझ में आयी और वे बाहर निकल गये।
आज दोनों सदनों की लॉबियों में सन्नाटा सा दिख रहा था। आमतौर पर लॉबियों में दिखने वाली गहमागहमी नजर नहीं आयी। मंत्री और विधायकों के सहयोगी भी नजर नहीं आये। लोकसभा चुनाव के पहले का यह आखिरी सत्र है। इसलिए विधायकों की क्षेत्रीय विवशता समझी जा सकती है। लेकिन कोई भी विवशता व व्यस्तता कोरम का संकट खड़ा कर दे, यह लोकतंत्र के लिए उचित नहीं हो सकता है।