अररिया लोकसभा और जहानाबाद व भभुआ विधान सभा उपचुनाव में राज्य में सत्ता समीकरण और जातीय ध्रुवीकरण की अग्नि परीक्षा है। यह उपचुनाव नीतीश कुमार और सुशील मोदी के ‘डबल इंजन’ के खिलाफ तेजस्वी यादव के नेतृत्व में संभावित गोलबंदी की अग्नि परीक्षा भी है। नीतीश-सुशील का पूरा गणित सवर्ण वोटों की गोलबंदी पर टिका है तो तेजस्वी का गणित यादव और मुसलमान के अलावा अन्य जातीय वर्गों में आधार विस्तार पर निर्भर है।
वीरेंद्र यादव
तीनों निर्वाचन क्षेत्रों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव अपनी पूरी ताकत के साथ मैदान में हैं। विधायकों की उपस्थिति विधानसभा में कम और चुनाव सभा में ज्यादा है। विभिन्न पार्टियों और गठबंधन के विधायकों और सांसदों को अपनी जाति के वोटों को गोलबंद करने का जिम्मा सौंप दिया गया है। इस चुनाव में पार्टी निष्ठा से ज्यादा जाति निष्ठा महत्वपूर्ण हो गयी है। विभिन्न क्षेत्रों में प्रचार में जुटे सांसद, विधायक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं से बातचीत में यह बात साफ तौर पर उभर कर आ रही है कि वोटर पार्टी का नहीं, जाति का चुनाव कर रहे हैं।
जहानाबाद से चुनाव प्रचार कर लौट रहे सत्तारूढ़ के एक विधायक ने कहा कि भूमिहारों के पास जदयू को वोट देने के अलावा विकल्प ही क्या है, जबकि भभुआ में कैंप कर रहे कांग्रेस के विधायक ने कहा कि कुशवाहा और रविदास पूरी तरह कांग्रेस के साथ है। उन्होंने कहा कि इन जातियों को लगता है कि जब अंबेदकर और फूले-पेरियार की प्रतिमा टूट सकती है तो जगदेव बाबू की प्रतिमा भी सुरक्षित नहीं रह सकती है। और प्रतिमा तोड़ने वाले कौन लोग है, किसी से छुपा नहीं है।
राजद व कांग्रेस गठबंधन पहली बार तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चुनाव मैदान में है। तेजस्वी के लिए यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि वे लालू यादव के मार्गदर्शन के बिना नीतीश कुमार व सुशील मोदी के मुकाबले में खड़े हैं। नीतीश-सुशील की जोड़ी करीब पांच बाद साल साथ-साथ चुनाव प्रचार में है। इन 5 वर्षों में जातीय समीकरणों में व्यापक बदलाव आया है। अतिपिछड़ों में बनिया और गैरबनिया का भेद बढ़ा है।
लालू यादव व नीतीश कुमार की राह अलग-अलग होने के बाद अतिपिछड़ी जातियों में आधार बढ़ाने और बनाये रखने की कोशिश दोनों तरह से तेज हो गया है तो मुसलमान वोटरों में जदयू से मोहभंग हो गया दिखता है। बदले हुए जातीय व सत्ता समीकरण में तीन सीटों के लिए हो रहे उपचुनाव सिर्फ पार्टियों की हार-जीत का फैसला नहीं करेगा, बल्कि नये समीकरणों की दिशा भी तय करेगा।