कोई 12 साल पहले की बात है कैलाश सत्यार्थी ने एक साक्षात्कार में मुझसे कहा था बंधुआ मजदूरों को आजाद कराने का इतिहास में पहला कामयाब आंदोलन हजरत मोहम्मद साहब ने शुरू किया था.
आज उन्हें 2014 का शांति का नोबेल पुरस्कार मिला है. तब मैं इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता था कि सत्यार्थी इस ऊंचाई तक पहुंच जायेंगे.
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन
कैलाश के संग यह सम्मान मलाला यूसुफ जई को भी मिला है.
बचपन बचाओ आंदोनल और कैलाश सत्यार्थी का नाम मैंने पहली बार बीबीसी पर सुना. उसके बाद कुछ मुलाकातें और बातें हुईं थीं. उनके साथ हमारे कई मित्रों ने काम किया है. पर उनका अनुभव कैलाश के संग बहुत अच्छा नहीं रहा.
आहिस्ता-आहिस्ता कुछ लोगों ने कैलाश को ठीक उसी तरह प्रोजेक्ट करना शुरू किया जैसे आम तौर पर एनजीओ के लोगों को समझा जाता है. लेकिन कैलाश इन साब बातों से बे परवाह अपने काम में लगे रहे. हमारी पहली मुलाकात जब उनसे हुई तो वह पटना से दिल्ली के लिए ट्रेन पकड़ने जा रहे थे . उस वक्त उन्होंने अपने आंदोलन के बारे में मुझे समझाया कि कैसे उनका संगठन बचपन बचाओ आंदोलन बाल मजदूरों को आजाद कराता है. अपनी बातचीत में कालाश ने बाउंडेड लेबर और गुलामों को आजाद कराने की हजरत मोहम्मद की मिसलें कई बार दीं. पैगम्बर मोहम्मद बार-बार अपने लोगों को यह कहा करते कि गुलामों को आजाद कराना बहुत बड़ी इबादत है. कैलाश हजर मोहम्मद के इस आदर्श को अपने जीवन का मकसद बना चुके थे.
ताजा मामला
पिछले दो महीने पहले वह पटना में एक उर्दू अखबार के कार्यक्रम में शरीक हुए ते. वहां भी उन्होंने बच्चा मजदूरों की आजादी के अपने काम के बारे में बताया. तब वह सीतामढ़ी में कुछ बच्चा मजदूरों को आजाद करा कर उनकी पढ़ाई और फिर पढ़ाई के बाद एक होनहार इंसान बनने की कहानी सुनायी थी.
कैलाशसत्यार्थी के संगठन ने अब तक 80 हजार से ज्यादा बाउंडेड लबर को आजाद कराया है. इनमें ज्यादातर 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे हैं. कैलाश ने न सिर्फ उन्हें नया जीवन देने में मदद की बल्कि उनकी शिक्षा और रोजगार के अवसर भी प्रदान करवाने की सफल कोशिश की. बाल मजदूरी को हु्युमेन राइट्स से जोड़ने का काम भी कैलाश ने ही किया.
कैलाश का जन्म 1954 में हुआ और उन्होंने बच्चों के लिए 1990 के दशक में आंदोलन शुरू किया. हालांकि कैलाश ने निश्चित तौर पर बड़ा काम किया है और नोबेल शांति पुरस्कार उसका सबसे बड़ा सुबूत है. लेकिन पहली बार जैसे ही यह खबर मिली मुझे बड़ी मुश्किल से इस बात पर विश्वास हुआ क्योंकि आम तौर पर ऐसे पुरस्कार भारत के लोगों को मिलना आसान नहीं होता.
चाइल्ड लेबर पर काम करने वाले कैलाश को इस पुरस्कार के लायक नोबल कमिटी ने इसलिए समझा क्योंकि समाज में तभी शांति कायम हो सकती है जब हम बच्चों को उसका वास्तविक बचपन देंगे और उन्हें जीवन के अधिकारों से वंचित नहीं करेंगे. कैलाश ने इस मामले में सचमुच बड़ा काम किया है.
नोबल कमेटी ने पुरस्कार देने की घोषणा के बाद इस बात का उल्लेख किया है कि कैलाश और मलाला ने इंसानी हुकूक के लिए संघर्ष किया. एक मुसलमान हैं तो दूसरा हिंदू. एक भारत से हैं तो दूसरा पाकिस्तान से.
कैलाश ने अपने करियर की शुरूआत इल्ट्रिकल इंजिनियर के रूप में शुरू की लेकिन जल्द ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी.
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