विधान सभा चुनाव के चार दरवाजे बंद हो गए हैं। पांचवां दरवाजा भी 5 नवंबर को बंद हो जाएगा। सभी पांच दरवाजों की कीवाड़ 8 नवंबर को खुलेगी। सबको अगले रविवार का इंतजार है। दरवाजा खुलने के बाद निकलने वाला ‘जिन्न’ बिहार की अगली सरकार का भविष्य तय करेगा। लेकिन समय है कि थम सा गया है। जैसे पैर में मेहंदी लगी हो। वोटर, उम्मीदवार, पार्टी से लेकर बिहार का एक-एक व्यक्ति बेसब्र है। चुनाव सिर्फ हार-जीत का फैसला ही नहीं करेगा, यह भी तय करेगा कि दिल्ली में बैठी सरकार की बोल क्या होगी।
वीरेंद्र यादव, बिहार ब्यूरो प्रमुख
बिहार का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजद प्रमुख लालू यादव को केंद्र में रखकर लड़ा गया है। दरअसल हार या जीत इन्हीं दो व्यक्तियों की होनी है। बाकी दोनों खेमों के नेता मुखौटा भर हैं। बाकी नेताओं की भूमिका चुनाव परिणाम के बाद अगला रविवार तय करेगा। भाजपा की रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा था लालू यादव को टारगेट करना और नीतीश की अनदेखी करना। इस उद्देश्य में भाजपा के रणनीतिकार सफल भी हो गए। लेकिन भाजपा की यही रणनीति लालू यादव के लिए कारगर हथियार साबित हुआ। लालू की भाजपा द्वारा पेश नकारात्मक छवि लालू यादव के आधार वोट यादव व मुसलमानों को एकजुट कर दिया। नीतीश के स्वजातीय वोट के अलावा उनकी छवि के आधार पर मिलने वाला वोट लालू यादव के लिए ‘बोनस’ वोट साबित हुआ।
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आरक्षण पर गोलबंदी
यादव व मुसलमान वोट की एकजुटता के खिलाफ सवर्ण वोट भी एकजुट हो गया। इसका असर हुआ कि भाजपा के पास आधार वोट सवर्णों का हो गया। यह यादव वोट के बराबर हो गया। अब मुसलमान वोट के खिलाफ भाजपा आरक्षण को बड़ा मुद्दा लेकर आयी। धार्मिक आधार पर आरक्षण की कोशिश के समर्थन के मुद्दे पर नीतीश कुमार को घेरने की कोशिश की। वोट की संख्या बढ़ाने का यह खेल जारी है। लेकिन खेल का परिणाम किसके पक्ष में गया है, यह रविवार को तय होगा। चुनाव परिणाम में ‘अदृश्य’ वोटों की बड़ी भूमिका होगी। वही वोट जिन्न भी साबित होगा।
रविवार का इंतजार
हार-जीत के दावों और विश्लेषणों के बीच रविवार का इंतजार सबको भारी पड़ रहा है। समय के छह कदमों की दूरी पर खड़ा है रविवार, लेकिन समय चलने का नाम नहीं ले रहा है। समय ठहर सा गया है। समय का पहिया संभावनाओं के कीचड़ में अटक सा गया है। हर कोई समय के पहिये समतल जमीन पर लाने की कोशिश कर रहा है, ताकि गति तेज हो। लेकिन समय मदमस्त है। अडि़यल हो गया है। अनुनय-विनय का कोई असर नहीं। वह भी वोटरों के तरह मंद गति से ही आगे बढ़ना चाहता है। हम नेताओं की तरह हड़बड़ी में हैं। उम्मीदवार शत-प्रतिशत मतदान चाहता है और वोटर का दम 55 फीसदी पहुंचते-पहुंचते फुलने लगता है।
व्यापक इंतजाम
खैर, समय पैर में मेहंदी लगाए या बेड़ी। उसे चलना तो पड़ेगा ही। समय भी नियति का गुलाम है। सूर्य भले अचल हो, धरती तो गतिमान है। समय को चलना ही पड़ेगा। समय की गति के साथ परिणाम को लेकर सबकी धड़कने तेज होती जा रही है। वोटर से लेकर उम्मीदवार तक हर कोई रविवार का इंतजार कर रहा है। चैनल वालों ने भी व्यापक तैयारी की है। इसका प्रचार अभियान भी चलाया जा रहा है। चुनाव आयोग ने भी शांतिपूर्ण मतगणना के लिए व्यापक इंतजाम किये हैं। परिणम का इंतजार है तो बेहाल रहिए रविवार तक।