उम्र के आखिरी पड़ाव में मुलायम सिंह के पास खोने के लिए बहुत कुछ नहीं है. लेकिन अगर समाजवादी दंगल नहीं रुका तो सबसे ज्यादा अखिलेश को ही गंवाना पड़ेगा.
नौकरशाही ब्यूरो
समाजवादी परिवार में छिड़ा दंगल, अखिलेश यादव को एक गुट द्वारा राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिये जाने से खत्म नहीं होने वाला. राजनीतिक दंगल अब कानूनी दंगल बनेगा. जबकि निजी स्तर पर सपा के कद्दावर नेता आजम खान व राजद प्रमुख लालू प्रसाद अपनी कोशिशे भी जारी रखी है. उधर मुलायम ने चुनाव चिन्ह साइकिल को सुरक्षित रखने के लिए चुनाव आयोग का रुख कर दिया है.
पिता पुत्र के इस दंगल में अभी कई उतार -चढ़ाव आने हैं. मुलायम और अखिलेश दोनों को पता है कि पार्टी में बिखराव से दोनों बराबाद होंगे. लेकिन शह और मात का यह खेल दोनों को काफी दूर ले जा चुका है. जहां मुलायम कई बार अखिलेश को यह आभास करा चुके हैं कि उन्होंने ही सब कुछ त्याग कर अखिलेश को यूपी का सीएम बनाया था वहीं अखिलेश यादव को इस बात का भय सता रहा है कि मुलायम सिंह उन्हें अगली बार सीएम के पद तक पहुंचने देना नहीं चाहते. पिता-पुत्र के बीच अविश्वास की खाई इतनी बढ़ गयी है कि इसे बार बार पाटने की कोशिश के बावजूद नतीजा हर बार सिफर ही आ रहा है. दूसरी तरफ जहां सपा के ज्यादातर विधायक अखिलेश के साथ खड़े हैं तो इसका कारण अखिलेश की सांगठनिक क्षमता नहीं बल्कि उनका युवा और ऊर्जावान होना है क्योंकि उन्हें पता है कि उमर की ढलान में मुलायम सिंह की राजनीतिक सक्रियता सीमित है. सपा के विधायकों का यह अखिलेश प्रेम खुदगर्जी और संभावनाओं पर आधारित है.
इधर खबर आ रही है कि जिन आजम खान ने इससे पहले मुलायम और अखिलेश में सुलह करायी थी वह फिर से इस कोशिश में जुट गये हैं कि कोई बीच का रास्ता निकले. समझा जा रहा है कि लालू प्रसाद भी यह मानते हैं कि समाजवादी परिवार अगर बिखरा तो यूपी में साम्प्रदायि शक्तियों को लाभ होगा और इस तरह इसका सबसे बड़ा नुकसान अखिलेश यादव को उटाना पड़ेगा.
वैसे भी मुलायम के पास कोई सत्ता नहीं जिसके खोने का उनको गम हो. नुकसान तो अखिलेश यादव को ही उठाना पड़ेगा. कीमत तो अखिलेश यादव को ही चुकानी पड़ेगी. इस लिए यह कहना मुश्किल नहीं कि इस बात का एहसास अखिलेश यादव को नहीं है. उन्हें पूरा एहसास है और इसलिए अबभी उम्मीद है कि समाजवादी परिवार अंत अंत तक एक हो सकता है.