जनता परिवार के ‘राग विलय’ के सुर-ताल में अचानक एक गवैया (कंपेनर) कूद पड़ा है। वह भी कॉरपोरेट गवैया। लेकिन अभी साटा (कांट्रैक्ट) तय नहीं है। बाजार बनाया जा रहा है और दोनों ओर से मोल-भाव जारी है। इसमें मध्यस्थ की भूमिका में राज्यसभा सांसद पवन वर्मा हैं।
वीरेंद्र यादव
हम प्रशांत किशोर की बात कर रहे हैं। दो दिन पहले तक वह सीन में कहीं नहीं थे, कि अचानक खबर आयी कि पीएम नरेंद्र मोदी को ‘इलेक्शन कंपेन’ के मुखिया प्रशांत अब नीतीश कुमार का इलेक्शन कंपेन संभालेंगे। शुरुआती खबर आयी कि वह बलिया हैं। फिर सूचना मिली कि वह बक्सर हैं और अब कंफर्म सूचना है कि भोजपुर (आरा) जिले के निवासी हैं। प्रशांत किशोर का इतिहास-भूगोल खंगालने के लिए यूपी निवासी बिहार के तीन राज्यसभा सांसदों से फोन पर बात की, तो स्थिति कुछ-कुछ साफ हुई, लेकिन धुंध अभी भी बरकरार है।
अभी प्रशांत और सीएम नीतीश कुमार के बीच कोई बात नहीं हुई है। निश्चित रूप से इसकी पहल सांसद पवन वर्मा की ओर से की जा रही है। जदयू सासंदों की मानें तो प्रशांत किशोर नीतीश कुमार के साथ काम करना चाहते हैं। वह नीतीश कुमार की नीतियों और कार्यशैली से प्रभावित हैं। लेकिन एक सांसद ने कहा कि प्रशांत प्रोफेशनल हैं तो निश्चित रूप से सौदा भी होगा। सौदा की शर्तें भी होंगी। इसीलिए अब तब आ रही सूचनाओं को अंतिम नहीं माना जा सकता है।
कार्यकर्ताओं को बांधे रखना चुनौती
लेकिन इतना तय है कि इस दिशा में पहल हो रही है तो थोड़ा या ज्यादा नीतीश कुमार की सहमति भी रही होगी। यानी समाजवादी नीतीश कुमार को समाज से ज्यादा कॉरपोरेट पर भरोसा बढ़ रहा है। कार्यकर्ताओं से ज्यादा प्रोफेशनल्स को विश्वस्त मान रहे हैं। इसका मतलब यह भी हुआ कि लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार जिस जमीन खीसकने की बात कह रहे थे, उस जमीन पर पांव जमाना अब कार्यकर्ताओं के बस की बात नहीं है। इसलिए कॉरपोरेट का सहारा ले रहे हैं नीतीश। कॉरपोरेट की आंधी में कार्यकर्ता किनारे न खड़ा हो जाएं, यह भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सोचना होगा।