शनिवार की दोपहर में हम पुनाईचक से फुलवारी जा रहे थे। रास्ते में उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी का सरकारी आवास 1, पोलो रोड पड़ता है। उपमुख्यमंत्री से मिलने की उम्मीद से साइकिल उनके आवास में मोड़ दिया। मुख्य बिल्डिंग के दरवाजे पर शैलेंद्र ओझा मिल गये। वर्षों से वे सुशील मोदी के साथ उनके निजी स्टाफ में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि थोड़ी देर में मोदी जी आ रहे हैं। अंदर बैठिये। वेटिंग रूम के रूप में बड़ा सा हॉल है। उसमें दरवाजा खोलकर देखा तो खचाखच भरा हुआ था। उसके बगल में उपमुख्यमंत्री का कार्यालय है, जिसमें स्टाफ बैठते हैं। उसी में थोड़ी जगह और खाली कुर्सी मिली तो बैठ गये।
दरबार लाइव
वीरेंद्र यादव
उपमुख्यमंत्री के आवास में एक ‘दरबार हॉल’ है। उनका ‘जनता दरबार’ इसी में लगा करता था। पिछली बार उपमुख्यमंत्री थे, तब भी। और जब सरकार से हटे तब भी, जनता दरबार का सिलसिला जारी रहा। हर मंगलवार को लगने वाला दरबार पर्व-त्योहार और अन्य राजनीतिक व्यस्तताओं को छोड़कर लगातार लगता रहा। इस बार सत्ता में लौटने के बाद जनता दरबार शायद नहीं लग पाया है। मुख्यमंत्री का जनता दरबार बंद होने का साइड इफेक्ट उपमुख्यमंत्री के जनता दरबार पर भी पड़ सकता है। लेकिन कार्यकर्ताओं और समर्थकों का भरोसा थमता नजर नहीं आ रहा है।
शनिवार को भी यही स्थिति थी। लोग दरबार हॉल के बजाये वेटिंग और स्टाफ रूम में भरे हुए थे। थोड़ी देर बाद सुशील मोदी आये। मिलने वालों की लिस्ट भेजी गयी। इसके बाद मिलने का सिलसिला शुरू हुआ। हम भी अपनी बारी के इंतजार में कुर्सी छोड़कर गलियारे में टहलने लगे। थोड़ी देर बाद बुलावा आया। अंदर मिलने वाले बारी-बारी से मुलाकात कर रहे थे और अपनी बात रख रहे थे। भाजपा के सरकार में आने से पहले मिलने वाले अधिकतर लोग सरकार के खिलाफ शिकायत लेकर आते थे। लेकिन कल मिलने वालों में अधिकतर सरकार से उम्मीद लेकर आये थे। शिकायत भी थी तो साथ में समाधान का भरोसा भी चेहरे पर नजर आ रहा था।
उपमुख्यमंत्री को किसी प्रोग्राम में जाना था और सूची लंबी थी। समय का अपना दबाव था। इसको देखते हुए उन्होंने बाहर में लोगों को मिलने के लिए बुलाया। सुशील मोदी के कमरे के बाहर निकलते ही मिलने वालों की भीड़ टूट पड़ी। पोर्टिको के बाहर लोग अपनी-अपनी शिकायत और उम्मीदों से उपमुख्यमंत्री को अवगत कराते रहे। हर कोई अपनी बात कह लेना चाहता था और पुख्ता आश्वासन की अपेक्षा भी चाहता था। सुशील मोदी भी अपनी ओर से अपेक्षाओं को पूरा करने का भरोसा दिला रहे थे। ‘कहा-सुनी’ का यह दौर लंबा होते देख हम अपनी साइकिल पर सवार हो घर के लिए प्रस्थान कर लिये।