बिहार में सरकार लूटने के बाद अब बिहार भाजपा नीतीश कुमार के आधार लूटने की योजना बना रही है। इसके लिए 6 और 7 अक्टूबर को भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक ‘बनियों का शहर’ पटना सिटी में हो रही है। इस बैठक में पार्टी जनाधार विस्तार और अकेले दम पर बहुमत जुटाने की रणनीति पर विचार करेगी और उसको कार्यरूप देने का प्रयास भी करेगी।
वीरेंद्र यादव
गैरबनिया अतिपिछड़ी जातियों पर है भाजपा की नजर
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यादव व मुसलमान को हाशिये का वोट मानती है भाजपा
जदयू सरकार में शामिल होने के बाद भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की पहली बैठक मंत्री नंदकिशोर यादव के विधान सभा क्षेत्र में हो रही है। यह बैठक तब हो रही है, जब भाजपा बिहार की सभी 40 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने की कार्ययोजना बना रही है। इसे सहयोगी दलों का ‘भयादोहन’ करने की रणनीति माना जा सकता है। हालांकि भाजपा के कुनबे में शामिल दल इसे राजनीतिक प्रक्रिया मान रहे हैं।
प्रदेश अध्यक्ष नित्यांनद राय की अध्यक्षता में नवगठित प्रदेश कार्यसमिति की यह दूसरी बैठक है। इस बैठक में प्रदेश अध्यक्ष को पिछले नौ माह की उपलब्धियों के बारे में बताना होगा और आगामी कार्ययोजनाओं पर प्रकाश भी डालना होगा। इसके साथ राज्य सरकार में भाजपा के मुखिया उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को सरकार में शामिल होने का औचित्य बताना होगा और सरकार की उपलब्धियों को पार्टी हित के साथ जोड़कर दिखाना होगा।
भाजपा की कार्ययोजना में सबसे प्रमुख काम है जनाधार का विस्तार। सवर्ण वोटर एकमुश्त भाजपा के साथ हैं। इस वोट को टूटने की कोई आशंका भी नहीं है। जबकि भाजपा मुसलमान और यादव को हाशिए का वोट मानती है और उसको जोड़ने की कोई पहल भी नहीं करती है। एकमात्र कुर्मी जाति का वोट ही नीतीश कुमार का थोक वोट है। अतिपिछड़ा में गैरबनिया वोटों पर नीतीश कुमार अपना दावा करते रहे हैं। भाजपा की नजर भी गैरबनिया अतिपिछड़ी जातियों पर है। कुशवाहा जाति के वोटरों का झुकाव अलग-अगल स्वजातीय नेता के साथ है।
अनुसूचित वोटों का झुकाव स्पष्ट नहीं होता है। वजह है कि ये जातियां राजनीतिक रूप से मुखर नहीं हैं। भाजपा हिन्दुत्व के नाम पर इन जातियों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास करती रही है, लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली है। दलित प्रतीकों को इस्तेमाल भी भाजपा खूब कर रही है। लेकिन सफलता का दावा कोई नहीं कर रहा है। खैर, भाजपा के दो दिवसीय विचार मंथन से निकले ‘अमृत’ का लाभ भाजपा को मिलेगा, लेकिन इसका ‘विष’ आखिरकार जदयू के हिस्से में ही आएगा। यानी भाजपा के जनाधार विस्तार का नुकसान जदयू को उठाना पड़ेगा।