नौकरशाही डॉट कॉम के एक ऑनलाइ सर्वे से पता चला है कि 10 सितम्बर से 3 अक्टूबर के दौरान शहाबुद्दीन के प्रति मुसलमानों की सहानुभूति में जबर्दस्त इजाफा हुआ है जबकि बिहार सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी चरम पर है.
इस ऑनलाइन सर्वे में 650 मुसलमान शामिल किये गये थे.
सर्वे में शामिल 71 प्रतिशत लोगों का मानना है कि राज्य सरकार ने मीडिया और विरोधी दलों के दबाव में आ कर सुप्रीम कोर्ट में उनकी जमानत रद्द कराने पहुंच गयी. इस सर्वे में 67 प्रतिशत लोगों का मानना है कि शहाबुद्दीन की जमानत रद्द करवाने में तत्परता दिखायी गयी जबकि समझौता एक्सप्रेस व मालेगांव आतंकी हमले के आरोपी और आरएसएश प्रचारक असीमानंद को इसी दौरान जमानत मिली तो उनकी जमानत पर किसी ने विरोध तक नहीं किया जो पक्षपातपूर्ण है.
हालांकि 29 प्रतिशत लोगों का मानना है कि कानूनी प्रक्रिया में वह कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते . 38 प्रतिशत लोगों का कहना था कि शहाबुद्दीन के खिलाफ हत्या के संगीन आरोप हैं और कई मामलों में उन्हें सजा हो चुकी है इसलिए उनकी जमानत रद्द होना सही है.
राजद से नाराजगी भी चरम पर
जब उनसे पूछा गया कि शहाबुद्दीन को हाईकोर्ट द्वारा जमानत मिलना और फिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे रद्द कर दिये जाने के बाद बिहार की गठबंधन सरकार और राजद के प्रति उनकी क्या प्रतिक्रिया है तो इस पर 64 प्रतिशत लोगों का कहना था कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जमानत रद्द करवाने के लिए जा कर यह साबित कर दिया कि वह शहाबुद्दीन को सबक सिखाना चाहती थी और इस मामले में राजद का रवैया ढुल-मुल था. सर्वे में 73 प्रतिशत लोगों ने इस मामले में खुल कर राजद के प्रति नाराजगी जताई.
हालांकि 39 प्रतिशत लोगों का मानना है कि राज्य सरकार कानूनी सीमाओ का पालन करते हुए सुप्रीम कोर्ट गयी जो कि सही कदम था.
इस सर्वे में 68 प्रतिशत लोगों ने कहा कि शहाबुद्दीन मुसलमानों के सर्वाधिक जनाधार वाले नेता हैं और उनमें वे हीरोइक इमेज देखते हैं.
हालांकि यह एक ऑनलाइन सर्वे था लेकिन इसमें यह कोशिश की गयी थी कि सर्वे में शामिल या तो बिहार के हों या बिहार से बाहर रहने वाले बिहारी हों. सर्वे में शामिल 24 प्रतिशत ऐसे लोग शामिल थे जो गल्फ देशों में रहते हैं लेकिन वे बिहारी पृष्ठभूमि के हैं.
हालांकि इस सर्वे में 34 प्रतिशत लोगों ने माना है कि शहाबुद्दीन एक अपराधिक छवि के नेता हैं इसलिए वे उनको नेता नहीं स्वीकार कर सकते.
इस सर्वे के परिणाम पर प्रतिक्रिया देते हुए नौकरशाही डॉट कॉम के एडिटर इर्शादुल हक का कहना है कि ऐसा लगता है कि शहाबुद्दीन की जमानत मिलने के बाद मीडिया के एक वर्ग ने जिस तरह से आक्रामक रिपोर्टिंग की इसलिए भी लोगों के बड़े वर्ग ने शहाबुद्दीन के प्रति सहानुभूति दिखायी. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि शहाबुद्दीन को ज्यादातर लोगों ने उनकी आपराधिक छवि के आईने में देखने के बजाये उन्हें एक मुस्लिम फेस के रूप में देखने की कोशिश की है जिस कारण उनके प्रति सहानुभूति लोगों में बढ़ी है.