पिछले दिनों पटना में सीपीआई एम के नेतृत्व में छह वामपंथी पार्टियों ने मिल कर चुनाव लड़ने का फैसला किया. इस साक्षात्कार में एमआई खान को सीता राम येचुरी बता रहे हैं कि लेफ्ट पार्टी की क्यो योजना है.
पश्चिम बंगाल के गढ़ में आपकी पार्टी ने जनाधार खो दिया. पूरे देश में हाल ठीक नहीं. संगठन को मजबूत बनाने के लिए क्या योजना है?
मैं पिछले पांच महीने से पार्टी का नेतृत्व कर रहा हूं. परिवर्तन दिखने के लिए यह बहुत कम समय है. मैं मानता हूं कि पिछले एक दशक में पार्टी की लोकप्रियता घटी है. संसद में भी हमारी नुमाइंदगी कम हुई है. लेकिन याद रखिये कि पार्टी को चलाने के लिए कोई स्विच नहीं होता कि आप उसे जब चाहें आन कर दें, जब चाहें आफ कर दें.हमने देशव्यापी आंदोलन करने की रणनीति बनायी है. हमारी कोशिश है कि हालत में बदलाव आये.
सीपीआईएम जैसी पार्टी हिंदी प्रदेशों में कमजोर क्यों है? जबकि गुरबत इन्हीं प्रेदेशों में ज्यादा है और आपकी पार्टी गरीबों- शोषितों की पार्टी मानी जाती है.
हमने यह तय किया है कि आने वाले दिनों में लोगों तक पहुंचने के लिए कई अभियान शुरू करेंगे. हम अपने एजेंडे को अधिकतम लोगों तक पहुंचायेंगे. हमने यह भी तय किया है कि हम वामपंथी पार्टियों के बीच भी एकता को मजबूत करेंगे.
क्या यह संभव है कि तमाम वामपंथी पार्टियों को एक साथ लाया जा सके. पिछले अनुभव तो नाकाम रहे हैं.
हमने अभी तक जिन प्रदेशों में एकता के प्रयास किये हैं, उसके नतीजे अच्छे रहे हैं. पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार, आंध्रप्रदेश आदि राज्यों में वामपंथी पार्टियों ने हाथ मिलाया है ताकि साम्प्रदायिक भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला किया जा सके.
क्या यह सच है कि युवा पीढ़ी कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ आकर्षित नहीं हो रही? नतीजतन लेफ्ट पार्टियों की तरफ कम ही युवा आ पा रहे हैं.
हम ध्रुवीकरण की राजनीति पर भरोसा नहीं करते. हम जाति, धर्म या समुदाय के आधार पर लोगों को नहीं जोड़ते. और न ही हम भावनात्मक मुद्दे को हवा देते हैं. पिछले कुछ सालों में भारतीय जनता पार्टी ने युवाओं को अपनी ओर खीचने के लिए ऐसे ही खेल खेले हैं. यह अलग बात है कि अब वही युवा उसके वादे नहीं पूरे होने से नाराज हैं. लेफ्ट पार्टियों से बड़ी संख्या में युवा जुड़ रहे हैं.
ऐसी क्या मजबूरी है कि सीपीआई एम ने लेफ्ट पार्टियों को एक मंच पर लाने की जरूरत महसूस की. एक दशक पहले तक आपकी पार्टी बड़े भाई भूमिका निभाती रही और खुद को दूसरी लेफ्ट पार्टियों से अलग रखा.
देश के राजनीतिक हालात बदल चुके हैं. सभी लेफ्ट पार्टियां साथ आ रही हैं. बिहार में साथ चुनाव लड़ने के लिए छह लेफ्ट पार्टियां एक साथ आयी हैं.यह हमारी शुरूआत है. हमारी कोशिश है कि हम बिहार में अपनी मौजूदगी को बढ़ायें. बिहार की जनता पीएम मोदी के रथ को रोक देगी. मोदी के रथ को बिहार के दो भाई मिल कर रोकेंगे. और ये हैं किसान और मजदूर.
रेडिफ डॉट कॉम से साभार