साहित्य सम्मेलन का 40वां अधिवेशन में गांधी के दर्शन और साहित्य की दिखी झलक
आधनिक हिन्दी साहित्य के महान पुरोधा हैं आचार्य देवेंद्र नाथ शर्मा
हिन्दी साहित्य सम्मेलन के ४०वें महाधिवेशन में देश की दोनों विभूतियों को किया गया श्रद्धापूर्वक स्मरण
‘विद्या–वारिधि‘की उच्च मानद–उपाधि से विभूषित हुईं न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र
सम्मानित हुए अनेक विद्वान,कवि–सम्मेलन में कवियों और कवयित्रियों ने जमाया रंग,
कलाकारों ने नृत्य–नाटिका‘सीतायन‘का किया मनोहारी प्रदर्शन
पटना,२मार्च। महात्मा गांधी के दर्शन और साहित्य में भारतीय आत्मा की अभिव्यक्ति होती है। विश्व–मानवता के लिए गांधी के, ‘सत्य के प्रयोग‘ पर आधारित विचार, आज और भी अधिक प्रासंगिक है। गांधी के रास्ते से हीं, भारत और विश्व का कल्याण संभव है। आचार्य देवेंद्र नाथ शर्मा आधुनिक हिन्दी साहित्य के महान पुरोधा हैं। साहित्य में अलंकार–शास्त्र के स्तुत्य आचार्य थे प्रो शर्मा।
यह विचार आज, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और आचार्य देवेंद्र नाथ शर्मा को समर्पित,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के ४०वें महाधिवेशन में देश की इन दोनों विभूतियों को श्रद्धा–पूर्वक स्मरण करते हुए, विद्वानों ने व्यक्त किया। स्मरणीय है कि, यह वर्ष महात्मा गांधी की जयंती का सार्ध–शतीवर्ष तथा आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा का जन्म–शती वर्ष है। इस अवसर पर, महाधिवेशन की मुख्य अतिथि तथा चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की कुलपति न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र ने हिन्दी भाषा और साहित्य की मूल्यवान सेवाओं के लिए,बिहार की महान साहित्यिक विभूतियों के नाम से, सम्मेलन द्वारा दिए जाने वाले अलंकरणों से ३५ विदुषियों और विद्वानों को सम्मानित किया।इसके पूर्व सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने, न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र को, सम्मेलन की उच्च मानद उपाधि ‘विद्या–वारिधि‘प्रदान कर सम्मानित किया।
अपने संबोधन में न्यायमूर्ति मिश्र ने कहा कि, हिन्दी देश की राजभाषा के साथ हीं न्यायपालिका की भी भाषा बननी चाहिए। हिन्दी से हीं हिन्दुस्तानियों का भला हो सकता है। भारत के न्यायालयों में ७० प्रतिशत जो मामले आते हैं, वे ग्रामीण–क्षेत्रों के होते हैं। वे अंग्रेज़ी नहीं जानते। उनके संबंध में न्यायालयों में क्या बात हो रही है, वे सुनकर भी समझ नहीं सकते। बहस और निर्णय भी उस भाषा में होते हैं,जिन्हें वे समझ नही सकते। उनके प्रति न्याय तभी हो सकता है, जब न्यायपालिका की भाषा भी हिन्दी हो। उन्होंने कहा कि, दक्षिण के लोगों को भी यह समझाया जा सकता है कि, जब वे अंग्रेज़ी सीख सकते हैं,तो हिन्दी क्यों नहीं। यह तो उनके देश की भाषा है।
उद्घाटन–सत्र
उद्घाटन–सत्र की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि अपनी स्थापना के इस शती–वर्ष में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन, ‘हिन्दी भारत की सरकार की भाषा शीघ्र घोषित हो‘ तथा संपूर्ण भारत वर्ष इसे ‘राष्ट्रीय–ध्वज‘की भाँति सम्मान दे,इस के लिए समूचे भारत वर्ष में अलख जगाने का संकल्प लिया है। हम अनेक आयोजनों के माध्यम से देश भर के साहित्यकारों को इस संकल्प के साथ जोड़ रहे हैं। इसी उद्देश्य के लिए,कश्मीर से कन्या कुमारी तक और दिल्ली से पूर्वोत्तर तक विभिन्न नगरों में सम्मेलन के आयोजन और देश भर के विदुषियों और विद्वानों के सम्मान के कार्यक्रम बनाए गए हैं। अभी से हीं चारों ओर से उत्साह–जनक सहयोग और समर्थन प्राप्त हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि,यह प्रत्येक भारतीय के लिए वैश्विक–लज्जा का विषय है कि, उनके देश की राजकीय भाषा, देश की कोई भाषा नहीं है, एक विदेशी भाषा है।
सुप्रसिद्ध विद्वान प्रो मंगलमूर्ति ने कहा कि, हिन्दी के उन्नयन में गांधी की दृष्टि विशुद्ध वैज्ञानिक थी। वे यह समझते थे कि, हिन्दी हीं संपूर्ण भारत वर्ष में स्वीकृत हो सकती है और इसमें वह शक्ति है, जो देश को एक सूत्र में जोड़ सकती है।
स्वागत
अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष और स्वागत समिति के अध्यक्ष डा कुमार अरुणोदय ने कहा कि, हिन्दी के प्रश्न को लेकर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन देश के कोने–कोने में जाएगा और लोगों को जगाएगा।
प्रथम सत्र
प्रथम वैचारिक–सत्र में‘गांधी–दर्शन और साहित्य‘ विषय पर संगोष्ठी संपन्न हुई,जिसमें मुख्य–वक़्ता के रूप मेंअपना विचार रखते हुए, प्रसिद्ध गांधीवादी–चिंतक और पूर्व सांसद डा रामजी सिंह ने कहा कि, युद्ध का विकल्प ‘युद्ध‘नही हो सकता । युद्ध का विकल्प ‘शांति‘है, गांधी का मार्ग है। गांधी का दर्शन किसी को अव्यावहारिक लग सकता है, किंतु इससे व्यावहारिक मार्ग कुछ और नहीं हो सकता। गांधी ने इसे अपने जीवन में उतार कर और देश को स्वतंत्र कराकर स्पष्ट कर दिया। आज गांधी को जानने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि, राजभाषा के संबंध में बापू की धारणा बहुत स्पष्ट थी। वे गुजराती होकर भी हिन्दी के पक्षधर इसलिए थे कि वे यह समझते थे कि हिन्दी में हीं वह शक्ति और पात्रता है कि, देश की भाषा हो सके। यह लज्जा का विषय है कि, लोग हिन्दी में बात करते हुए लजाते हैं और अंग्रेज़ी बोलकर गर्व करते हैं। अपने व्याख्यान का समापन करते हुए, उन्होंने कहा कि आप भले गांधी को मानो,न मानो, किंतु उन्हें पढ़ो और जानो ! यह देश के लिए बहुत आवश्यक है।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त की अध्यक्षता में आयोजित इस संगोष्ठी में सम्मेलन के प्रधान मंत्री डा शिववंश पाण्डेय, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा भूपेन्द्र कलसी और डा मधु वर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
दूसरा सत्र
दूसरे सत्र में ‘आचार्य देवेंद्र नाथ शर्मा एवं काव्य में अलंकार शास्त्र‘ पर संगोष्ठी हुई, जिसमें सुप्रसिद्ध विद्वान आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा के पुत्र और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के विद्वान डा विनयशील गौतम ने कहा कि,
आचार्य देवेंद्र नाथ शर्मा की धारणा थी कि वक्रोक्ति से अलंकृति वाणी काव्य बन जाती है। कविता कैसी होनी चाहिए ? इसके उत्तर में आचार्य जी कहा करते थे कि, जिसमें सौंदर्य हो और जो शब्दालंकार और अर्थालंकार से युक्त हो। उनका विचार था कि, सभी बातें नयी नहीं हो सकती है। किंतु कहने की शैली तो नई हो ही सकती है। कहने का ढंग रोचक हो तो कही लिखी सुनी–पढ़ी जाती है। और लिखे को, पढ़ा जाना हीं सार्थक करता है। सत्र के अंत में डा विनयशील गौतम ने ‘साहित्य और प्रबंधन‘ विषय पर अपना विशेष व्याख्यान दिया।
वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य की अध्यक्षता में आयोजित इस सत्र का उद्घाटन पटना विश्वविद्यालय के कुलपति डा एस एन पी सिन्हा ने किया।
भोजनावकाश के बाद खुला–सत्र आरंभ हुआ, जिसमें राज्य के विभिन्न जिलों से आए प्रतिनिधियों ने भाषा और साहित्य के विविध विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए तथा मुक्त–कंठ से हिन्दी के उन्नयन में सम्मेलन–अध्यक्ष के विचारों का समर्थन किया।
विराट–कवि–सम्मेलन
खुला–सत्र के पश्चात कवि–सम्मेलन आरंभ हुआ, जिसका उद्घाटन बिहार राज्य हिंदी प्रगति समिति के अध्यक्ष कवि सत्यनारायण ने की। सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र‘करुणेश‘ की अध्यक्षता में आयोजित इस कवि–सम्मेलन में ५० से अधिक कवियों और कवयित्रियों ने काव्य–पाठ किया।
काव्य–पाठ करनेवालों में राम उचित पासवान‘पासवाँ‘, आचार्य चंद्र किशोर पराशर, विजय गुंजन, आरपी घायल,पं गणेश झा, पूनम सिन्हा श्रेयसी, कुमारी स्मृति, रमेश कँवल,डा विजय प्रकाश,आराधना प्रसाद, कवि घनश्याम जय प्रकाश पुजारी,डा गोपाल प्रसाद‘निर्दोष‘, डा उमा शंकर सिंह, प्रणय पराग, कृष्ण मोहन मिश्र, उषा किरण,महेश्वर ओझा महेश,बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता, बागेश्वरी नंदन कुमार, डा अन्नपूर्णा श्रीवास्तव,मधु रानी, डा शालिनी पाण्डेय, डा सुलक्ष्मी कुमारी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी,डा आर प्रवेश, शमा कौसर ‘शमा‘ ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं पर गहरा प्रभाव डाला।
संध्या में सम्मेलन की कलामंत्री पल्लवी विश्वास के निर्देशन में, साहित्य सम्मेलन नृवागा संगीत अकादमी के सौजन्य से डा शांति जैन द्वारा लिखित नृत्य–नाटिका‘सीतायन‘ की मनोहारी प्रस्तुति हुई,जिसका उद्घाटन दूरदर्शन केंद्र,पटना के केंद्र निदेशक राम कुमार नाहर ने किया। डा शांति जैन द्वारा लिखित इस नृत्य–नाटिका में तीन पीढ़ियों के ३५ कलाकारों ने अपने अभिनय से दर्शकों को भाव–विभोर कर दिया। संगीत–निर्देशन पंडित अविनय काशीनाथ ने किया।
विभिन्न सत्रों में, प्रो बासुकीनाथ झा, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, राज कुमार प्रेमी, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री,श्रीकांत सत्यदर्शी,कृष्णरंजन सिंह,कुमार अनुपम तथा परवेज़ आलम ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन डा शांति जैन ने किया।