छत्तीसगढ़ में जो हुआ वह चौंकाने वाला है पांच घंटे के अंदर 83 ऑपरेशन यह समझने के लिये काफी हैं कि ऑपरेशन थिएटर में सुविधा कैसी रही होगी? पढ़ें वसीम अकरम त्यागी की विवेचना-
बिलासपुर (छत्तीसगढ़ ) में हुऐ नसबंदी संबंधित हादसे में अब तक 13 महिलाओं की मौत हो चुकी है। इनमें अधिकतर महिलाऐं दलित, आदीवासी, और बेहद गरीब परिवार से संबंध रखती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे शिविर समय – समय पर लगाये जाते रहे हैं जिनमें से अधिकतर लोगों की शिकायतें भी गाहे बगाहे सामने आती रहती हैं.
वर्ष 2012 में बिहार में भी इसी तरह नसबंदी और फिर उसके बाद पीड़ित महिलाओं की हालत बिगड़ने का मामला सामने आया था। राज्स्थान में भी मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद कई लोगों की आंखें चली गईं थी।
सवाल यह है कि राहत के नाम पर ऐसे शिविर लगाये ही किसलिये जाते हैं जब गरीबों को राहत के बजाय आफत झेलनी पड़े ?
खेल देखें! 5 घंटे में 83 ऑपरेशन
छत्तीसगढ़ में जो हुआ वह तो और भी चौंकाने वाला है पांच घंटे के अंदर 83 ऑपरेशन यह समझने के लिये काफी हैं कि ऑपरेशन थिएटर में सुविधा कैसी रही होगी ? इतनी जल्दी 83 ऑपरेशन की सफलतापूर्वक संपन्नता समझना अपने आपको धोखा देने से कम नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित आशुतोष भारद्वाज की रपट के अनुसार हर महिला को नसबंदी के लिए 600 रुपए दिए जाने थे। स्वास्थ्यकर्मी को प्रति महिला के हिसाब के डेढ़ सौ रुपए मिलते हैं। सर्जन को 75 रुपए और एनस्थीसिया देने वाले को प्रति ऑपरेशन 25 रुपए मिलते हैं। अगर कोई एनस्थीसिया वाला नहीं आता तो पूरा पैसा सर्जन की जेब में जाता है। इसी स्टोरी में यह भी बताया गया है कि किस तरह नसबंदी कराने के लिये महिलाओं को प्रलोभन दिया गया और उन्हें भेड़ बकरियों की तरह वैन में ठूंस कर शिविर में ले जाया गया।
इस हादसे में अपनी जवान गंवाने वाली नेम बाई बिलासपुर के बराड़ी गांव की रहने वाली थीं उनके देवर महेश सूर्यवंशी ने बताया कि ‘उन्हें वे लोग बिना हमसे पूछे ले गए। हमने बार-बार कहा कि उसने हाल में बच्चे को जन्म दिया है। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं सुनी। बोले-कुछ नहीं होगा। छोटा-सा ऑपरेशन है। भेड़-बकरियों की तरह ढकेलते हुए उन्हें ले गए’।
चिकित्सा कायदों की उड़ी धज्जियां
इतना ही नहीं जिन महिलाओं को ऑपरेशन के लिए ले जाया गया, उनमें से कई की सेहत ठीक नहीं थी। कुछ को शुगर की बीमारी थी। कुछ को दमा था और कुछ दिल की मरीज थीं। चिकित्सा के किसी कायदे या मापदंड का पालन नहीं किया गया।
सरकार ने पीड़ित परिवारों को चार लाख रुपये मुआवजा देने का एलान कर दिया ऐसे मामलों में सरकारों की ओर से जारी मुआवजा उन काले कारनामों पर पर पर्दा डाल देता है जिसकी वजह से ऐसी त्रासदी होती हैं। सरकार को पहले यह तय करना चाहिये कि वह गरीबी मिटाना चाहती है या फिर गरीब ?
अब तक जितने भी ऐसे मामले हुऐ हैं उनमें से अधिकतर मामलों में सरकारों ने मुआवजे का एलान करके उन पर पर्दा ही डाला है क्या यह समझ लिया जाये कि सरकार भी इस तरह की घटनाओं में पर्दे के पीछे से शामिल रहती है ?
छत्तीसगढ़ में जो हुआ है वह सबके सामने है कि किस तरह नसबंदी और परिवार नियोजन के नाम पर एक व्यवस्थाहीन अस्पताल में महिलाओं की नसबंदी की गई, चिकित्सकों की लापरवाही का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने उन महिलाओं तक की जांच तक नहीं की जिनको दिल, दमा, शूगर जैसी गंभीर बीमारियां थीं। 13 महिलाऐं अब तक मर चुकी हैं बाकी जिंदगी से जूझ रही हैं।
जाहिर है ये उन परिवारों की महिलाओं की हैं जिन्हें दो जून की रोटी की लाले हैं, कई महिलायें तो इनमें ऐसी हैं जिनका पेशा मजदूरी है। यह बताने की जरूरत नहीं कि ये महिलायें निहायत ही गरीब परिवार से ताअल्लुक रखती हैं। जो तथाकथित उच्च वर्ग, तथा अमीर घराने हैं उन्हें नसबंदी जैसे ढ़कोसलों की क्या जरूरत है। इन ढ़कोसलों का परीक्षण तो गरीब परिवारों पर होता है, अगर परीक्षण सफल है तो वाहवाही और अगर कोई खामी होगी तो सरकार मुआवजा देने के लिये तैयार है, क्या चार लाख रुपये की घोषणा किसी की जिंदगी लौटा सकती है?
इस हादसे में मरने वाली नेम बाई ने कुछ दिन पहले ही एक बच्चे को जन्म दिया था. क्या यह चार लाख रूपये नेम बाई के बच्ची की मां लौटा सकते हैं ? नहीं न फिर क्यों इस तरह के शिविर लगाये जाते हैं ? क्यों लोगों की जिंदगियों से खिलवाड़ किया जाता है ?
बकौल शायर
सियासत मुफलिसी पर इस तरह अहसान करती है
दो आंखें छीन लेती है और चश्मा दान करती है।