सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा में सीसैट विवाद की गहरी जड़ों को समझने के लिए यह सम्पादकीय पढ़ें. हमने अपने पाठकों के लिए इसे जनसत्ता से साभार लिया है.

छात्रों के आंदोलन की आंच से बचने के लिए केंद्र सरकार ने सोमवार को दो घोषणाएं कीं। एक यह कि संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा में ग्रेडिंग या मेरिट में अंगरेजी की योग्यता से संबंधित प्रश्नों के बीस अंक शामिल नहीं होंगे। दूसरे, वर्ष 2011 की परीक्षा देने वाले उम्मीदवारों को 2015 में एक और मौका मिलेगा। लेकिन इन दोनों फैसलों से छात्र कतई संतुष्ट नहीं हैं, उलटे उन्होंने नाराजगी जताते हुए अपना आंदोलन जारी रखने का एलान किया है। इस तरह यह मामला सुलझने के बजाय और उलझता दिख रहा है। दरअसल, न तो सरकार ने और न उसकी तरफ से बनाई गई समिति ने समस्या की तह में जाने की कोशिश की। आयोग ने सरकार के दोनों फैसलों से सहमति जताई है, पर यह शायद माहौल का दबाव है। सच तो यह है कि इस मामले में उसका रवैया शुरू से संवेदनशील नहीं रहा है।

आयोग का रुख

इस बार की प्रारंभिक परीक्षा को टालने की मांग उसने क्यों नहीं मानी? सरकार जब अंगरेजी प्रश्नों के अंक वरीयता-निर्धारण में शामिल न करने और 2011 के प्रतियोगियों को एक और अवसर देने के लिए आयोग को राजी कर सकी, तो इस बार की प्रारंभिक परीक्षा टालने के लिए क्यों नहीं कर पाई, जबकि इस बीच हजारों विद्यार्थियों का तैयारी का समय धरने-प्रदर्शन में गया है। अगर उनकी मांग पर सरकार सहानुभूतिपूर्वक विचार कर रही थी, तो उन्हें आंदोलन करने की सजा क्यों दी जा रही है!

विवाद का सबसे बड़ा मुद््दा सीसैट रहा है। लेकिन उसे ज्यों का त्यों बने रहने दिया गया है। यों ऐसे लोगों की कमी नहीं जो यूपीएससी की परीक्षा को लेकर उठे विरोध को बेतुका मानते हैं। कुछ का यह भी खयाल है कि यह विरोध कोचिंग संस्थानों के उकसावे पर शुरू हुआ। जबकि हकीकत यह है कि सीसैट लागू होने के बाद कोचिंग संस्थानों का धंधा और फला-फूला है। असंतोष को समझने के लिए सीसैट लागू होने के पहले और बाद के परीक्षा परिणामों को देखना जरूरी है।

असफलता

वर्ष 2010 तक यूपीएससी की परीक्षा में सफल होने वालों में जहां हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों की तादाद अच्छी-खासी थी वहीं मानविकी विषयों के विद्यार्थियों कीभी। लेकिन वर्ष 2011 में सीसैट यानी नई प्रणाली लागू होने के साथ ही वे हाशिये पर आ गए, उनकी सफलता दर अचानक लुढ़क गई। इसकी वजह यह है कि एप्टिट्यूड टेस्ट यानी अभिवृत्ति जांचने के लिए ज्यादातर प्रश्न ऐसे शामिल किए गए, जो गणित, इंजीनियरिंग और प्रबंधन के विद्यार्थियों को अत्यंत लाभ की स्थिति में रखते हैं। सरकार ने अंगरेजी के बीस अंकों से तो राहत दे दी है, पर सामान्य समझ के जो प्रश्न अंगरेजी में आते हैं उनसे पैदा होने वाली अड़चनें तो बनी हुई हैं।

अंग्रेजी

ये प्रश्न मूल रूप से अंगरेजी में तैयार होते हैं; उनका जो हिंदी अनुवाद दिया रहता है वह इतना ऊटपटांग होता है कि प्रश्न पल्ले ही नहीं पड़ते। इस अनुवाद के खिलाफ इतना शोर मचा, लेकिन अभी तक इस शिकायत को दूर करने का आश्वासन नहीं मिला है। फिर, सवाल सिर्फ हिंदी का नहीं है, अन्य भारतीय भाषाओं के अभ्यर्थियों का भी है, जिनके सामने सिर्फ अंगरेजी या हिंदी का विकल्प रहता है। प्रशासनिक भर्ती के लिए किसी न किसी रूप में एप्टिट्यूड या अभिवृत्ति परीक्षा अनिवार्य है। पर यह ऐसी नहीं होनी चाहिए कि पक्षपातपूर्ण लगे। सीसैट ने गणित, विज्ञान और अंगरेजी की साझा पृष्ठभूमि वालों को सिर-आंखों पर बिठाया है और बाकी सभी अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। जहां पाठ्यक्रम से लेकर सहायक पुस्तकों और कोचिंग तक सब कुछ अंगरेजीमय हो, सिर्फ अंगरेजी के बीस अंकों को वरीयता-निर्धारण से बाहर रखने के फैसले से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा।

By Editor


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427