भाजपा सांसद बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा सदाबहार नाराज नेता रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने के अपनी महत्वाकांक्षा को छुपाते भी नहीं हैं। वह बिहार की राजनीति पर मुम्बई में बैठकर चिंतन करते हैं। उन्हें अब विधानसभा चुनाव का बेसब्री से इंतजार है। भाजपा को यदि बहुमत मिलता है तो उन्हें अण्णे मार्ग से भी परहेज नहीं। पढि़ए यह साक्षात्कार, जिसमें है बिहार की रानजीति पर उनकी सोच और संभावना का आकलन।
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सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के साथ वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार पांडेय की बातचीत
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बिहार भाजपा में भावी मुख्यमंत्री बनने की होड़ नहीं थम रही। राधामोहन सिंह ने सुशील मोदी को भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया। इसके बाद कई नेताओं ने दावे ठोके। आपने भी बागडोर संभालने को तैयार होने की बात कही। नेता को लेकर विवाद कैसे रुकेगा?
मैं इस होड़ में नहीं हूं। पर, पार्टी की ओर से दी जाने वाली हर जिम्मेदारी निभाने को तैयार हूं। केंद्र में जब मैं मंत्री था, कोई आरोप नहीं लगा। मैं मानता हूं कि जैसे लोकसभा का चुनाव नरेंद्र मोदी की अगुआई में लड़ा गया, उसी तरह बिहार विधानसभा चुनाव भी पार्टी लड़े। भावी मुख्यमंत्री का नाम पहले तय हो जाए और यह सामूहिक निर्णय से तय हो। कौन नेता सक्षम है, किसकी सबों के बीच स्वीकार्यता है, इन पहलुओं पर विचार करने के साथ नाम तय कर चुनाव लड़ना पार्टी के साथ सहयोगियों के लिए भी श्रेयस्कर होगा।
केंद्रीय मंत्रिपरिषद का विस्तार और बिहार का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की मांग के आप भी समर्थक हैं?
क्यों नहीं रहूंगा। नरेंद्र मोदी की टीम का विस्तार तो होना ही चाहिए। टीम में अनुभवी और समक्ष लोगों को जगह मिले। मेरी राय में मंत्री पद के लिए 75 वर्ष की उम्रसीमा की पाबंदी उचित नहीं। डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर और आर्टिस्टों में अनुभव का ही महत्व होता है। वहां उम्रसीमा की कहां पाबंदी है? तब राजनीति में ऐसी पाबंदी मेरी समझ से परे है। लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा सरीखे अनुभवी नेताओ का महत्व कम कर कैसे आंका जा सकता है?
महाराष्ट्र में शिवसेना के खिलाफ भाजपा के लिए बिहारियों को आप कब संगठित करेंगे? क्या शिवसेना से भाजपा का अलग होना राजनीति बलंडर है?
(हंसकर) बाला साहेब ठाकरे से मेरे प्रगाढ़ संबंध रहे। मैं शिवसेना का विरोध कैसे करूंगा। भाजपा से शिवसेना की 25 वर्षों की दोस्ती टूटने का हमें अफसोस है। मैं तो किंकर्तव्यविमूढ़ था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाला साहेब के प्रति अपनी श्रद्धा और आदर व्यक्त करते हुए शिवसेना के खिलाफ नहीं बोलने की बात कर मेरी राह भी आसान कर दी है। मैं मानता हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विधानसभा के चुनाव में पार्टी की ओर से अत्यधिक इस्तेमाल न हो। उनकी अंधाधुंध सभाएं होंगी, तब पार्टी के अन्य नेता और प्रदेश इकाई की क्या भूमिका होगी। देश की जनता ने जिन उम्मीदों से उन्हें बागडोर सौंपी हैं, उसे पूरा करने की चुनौती उनके सामने है।
पटना में दशहरा हादसे को लेकर चार अधिकारियों का ट्रांसफर आपकी नजर में भी महज आईवाश है?
प्रशासनिक चूक के कारण हादसा हुआ। 33 लोगों की जान गई। रिपोर्ट आने के पहले स्वतंत्र जांच के लिए पटना के कमिश्नर, डीआईजी, डीएम और एसएसपी को हटाने की कार्रवाई की सराहना करता हूं। साथ ही ऐसी घटना की पुनरावृति रोकने के लिए ठोस योजना बनाने के साथ दोषी प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों को दंडित करने और उन्हें हमेशा के लिए पटना से बाहर रखने की मांग करता हूं। जिम्मेवार विपक्ष के नाते हमने मुख्यमंत्री की बर्खास्तगी या उनके इस्तीफे की मांग नहीं की, बल्कि राज्यपाल से उचित निर्णय लेने का अनुरोध किया।
(अरुण कुमार पांडेय दैनिक भास्कर पटना के राजनीतिक संपादक हैं।)