पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी ने कहा है कि मुख्यमन्त्री के रूप में जीतन राम मांझी की छवि मजे हुए एक नेता के रूप में उभर कर सामने आई हैं। सात-आठ महीने की कम अवधि में ही समाज के कमजोर तबकों में उनका अपना स्वतंत्र आधार बना है। आज जारी बयान में उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में मायावती जी की अप्रत्याशित हार के बाद राजनीति के विश्लेषक मांझी जी में उत्तर भारत के उभरते हुए दलित नेता की छवि देखने लगे हैं। दल का बिखरा आधार न सिर्फ वापस लौट रहा है, बल्कि बढ़ता भी दिखाई दे रहा है।
श्री तिवारी ने कहा कि लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी का कमजोर तबके का जो आधार वोट बिखर गया था, वह मांझी जी के नेतृत्व में पुनः गोलबन्द होता दिखाई दे रहा है। बिहार में जो राजनीतिक दल भाजपा को ईमानदारी के साथ रोकना चाहते हैं, उनके लिये मांझी जी के नेतृत्व के उभार ने बहुत अनुकूल परिस्थिति पैदा कर दी है। उन्होंने कहा कि विधान सभा चुनाव इसी वर्ष होना है। उसमे अब ज्यादा समय भी नहीँ बचा है। लेकिन सत्ताधारी दल भाजपा से लड़ने की जगह आपस में ही लड़ रहा है।
पूर्व सांसद ने कहा कि सीएम मांझी के खिलाफ अभियान नीतीश कुमार के नाम पर ही चलाया जा रहा है। इस अभियान से तो यही सन्देश जा रहा है कि नीतीश जी ने सामाजिक न्याय में निष्ठा की वजह से नहीं, बल्कि अपनी छवि चमकाने के लिए मुशहर समाज से आने वाले माँझी जी को मुख्यमन्त्री बनाया था। उन्होंने कहा कि जदयू में चल रहे इस उठा-पटक का लाभ अंततोगत्वा भाजपा ही उठाएगी। इसलिए नीतीश कुमार को तत्काल इस अभियान को बन्द कराना चाहिए और मांझी सरकार विधान सभा चुनाव तक निर्बाध चलेगी, इसकी घोषणा करनी चाहिए।