पटना का मुख्यमंत्री आवास। राजनीतिक गलियारे का सबसे बड़ा मजाक। जहां सीएम रहते हैं, वह सीएम आवास नहीं है। जहां सीएम आवास है, वहां सीएम नहीं रहते हैं। अधिकारी भी सीएम और सीएम आवास के बीच दौड़ लगाते रहते हैं।
वीरेंद्र यादव
एक दिन सीएम आवास की तलाश करते हम अणे मार्ग स्थित सीएम आवास चले गए। राजेंद्र चौक स्थित गेट पर सुरक्षाकर्मियों ने रोक दिया। हमने कहा- सीएम आवास जाना है। उन्होंने सलाह दी कि सीएम सर्कुलर रोड स्थित आवास में रहते हैं। हमने पूछा- आप लोग सीएम आवास को अगोर रहे हैं या सीएम को। शेड में बैठे सुरक्षाकर्मी का स्वाभिमान जाग उठा। उन्होंने कहा- आपको बोलने नहीं आता है। बाहर जाइए। हम अगोर नहीं रहे हैं, ड्यूटी कर रहे हैं।
हम फिर सर्कुलर रोड स्थित सात नंबर आवास पर पहुंचे। वह आज भी सरकारी दस्तावेज में पूर्व सीएम का आवास है। अब इसमें सीएम रहते हैं। गेट पर कोई बोर्ड नहीं लगा है। नेमप्लेट वाली जगह पर बिजली के तार अपनी इज्जत का इंतजार कर रहे हैं। हमने वहां सुक्षा में खड़े एक जवान से पूछा- यह किसका आवास है। उन्होंने कहा- आप पटना में पहली बार आए हैं क्या। यहां मुख्यमंत्री जी रहते हैं। हमने अपनी जिज्ञासा बढ़ायी- कहीं नाम नहीं लिखा हुआ है। इतना सुनते ही वे भड़क गए। उन्होंने कहा- मुख्यमंत्री के रहने के लिए नाम लिखना जरूरी है क्या।
यहां से हम अणे मार्ग और सर्कुलर रोड के कोने पर पहुंचे। अणे मार्ग का यह हिस्सा आवागमन के लिए बंद है। इसी गेट के पास सीएम आवास स्थित मुख्यमंत्री का आवासीय कार्यालय है। गेट के पास तैनात सुरक्षा अधिकारी से हमने पूछा- सीएम कार्यालय में शमीम जी पीआरओ हैं, उनसे मिलना है। उन्होंने सुझाव दिया- फोन पर बात कर लीजिए। हम फोन लगाने की कोशिश कर रहे थे कि सुरक्षा गार्ड ने कहा- आपको अंदर जाने के लिए राजेंद्र चौक वाले गेट से जाना होगा। वैसे ही सीएमओ में जाने का रास्ता है। हमने कहा- सात नंबर के अधिकारी इतना घूम कर जाते हैं क्या। इतना सुनना था कि सुरक्षागार्ड ने गुर्राया- आप अधिकारी हैं क्या। जाइए, बाहर जाकर फोन कीजिए।
इस पूरी प्रक्रिया में हम समझ नहीं पाए कि पटना में कितने सीएम आवास हैं और कितने द्वार हैं। जनता जाए तो कहां जाए। सुरक्षा में बड़ी फौज तैनात है। लेकिन किसकी सुरक्षा कर रहा है, किसी को पता नहीं। कम से कम हम नहीं समझ पाए कि सैकड़ों सुरक्षाकर्मी सीएम को अगोर रहे हैं, सीएम हाउस को अगोर रहे हैं या सीएमओ को अगोर रहे हैं। लेकिन यह जानकार संतोष हुआ कि अपने राज्य में न बंगले की कमी है और न द्वार की। बोलो जय बिहार की।