भाजपा के लिए लालू देश की सबसे बड़ी चुनौती हैं. सीबीआई छापे के जरिये भले ही लालू के साथ लड़ाई को केंद्र भ्रष्टाचार से लड़ाई का रंग देने में लगा है पर लालू इसे पिछड़ा बनाम अगड़ा की लड़ाई बनाने में सफल हुए तो यह भाजपा को भारी पड़ सकती है.
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट कॉम
भारत की राजनीति में दो बातें स्पष्ट याद रखनी चाहिए. पहला परिवारवाद को इस देश की जनता गंभीर मुद्दा स्वीकार नहीं करती. और दूसरा भ्रष्टाचार पर देश का कोई दल दूध का धुला नहीं इसलिए जनता इसे विकल्पहीनता के कारण मुद्दा नहीं स्वीकार करती. देश में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कुछ एक पार्टियों को अपवाद मान लें तो बाकी कोई भी पार्टी ऐसी नहीं जिसके दामन पर भ्रष्टाचार के दाग न लगे हों. यही कारण है कि जय ललिता जैसी नेता पर जब भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो वह जेल गयीं और आरोपमुक्त हुईं तो लौटते ही चुनाव मैदान में डट गयीं और बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बन गयीं.
लालू के घर सीबीआई का छापा, दिन भर चलता रहा
इसी तरह परिवारवाद का विरोध करने वाली देश की, अपवादों को छोड़ कर, कोई ऐसी बड़ी पार्टी नही जो खुद को दूध का धुल बता सके. यहां तक कि भाजपा के दर्जन भर ऐसे बुजुर्ग नेता हैं जिनके बेटे आज एमपी, एमएलए या विभिन्न बोर्ड या निगमों में अपनी पिता की विरासत संभाल रहे हैं. इनमें राजनाथ सिंह, यशवंत सिन्हा सरीखे बड़े नाम भी शामिल हैं.
ऐसे में राजद को भ्रष्टाचार के नाम पर घेरना एक बात है लेकिन राजनीति महज इस आधार पर आकार नहीं लेती. लालू और उनके परिवार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले आज से नहीं बल्कि 1997 से चल रहे हैं. चारा घोटाला मामले में लालू सजायाफ्ता तक हैं लेकिन लालू का राजनीतिक जनाधार न परिवारवाद के नाम पर कभी कम हुआ और न ही भ्रष्टाचार के नाम पर.
ताजा मामले में रेल मंत्री रहते हुए लालू पर होट के लीज आवंटन में सीबीआई छापेमारी कर रही है. इस पर लालू अपना पक्ष अदालत में रखने को तैयार हैं और अंतिम फैसला वहीं होगा. लेकिन जहां तक राजनीति की बात है वह इस लडाई को सोशल जस्टिस की पिच पर खीचने को आतुर हैं. वह इसमें पिछड़ों दलितों के खिलाफ सामंतियों की साजिश देख रहे हैं जिसे उनका वोटर समूह भी स्वीकार कर रहा है. छापेमारी के दौरान जिस तरह से पिछड़ों की गोलबंदी लालू के पक्ष में हो रही है इसकी कल्पना भाजपा ने नहीं की होगी. और अगर लालू इस लड़ाई को अगड़े बनाम पिछड़े की लड़ाई की शक्ल दे पाने में सफल रहे तो इसका नुकसान न सिर्फ भाजपा को होगा बल्कि इसके नुकसान का छींटा जद यू पर भी पड़ेगा.
उधर इस लडाई में कांग्रेस लालू के पक्ष में खड़ी हो गयी है ऐसे में लालू को एक और सहारा मिल गया है. उधर जद यू यह तय कर पाने की पोजिशन में नहीं है कि वह खुद को राजद से अलग करे. अगर उसने लालू का साथ नहीं छोड़ा तो भाजपा को ही अंतिम नुकसान उठाना पड़ेगा.