पत्रकार राजदेव रंजन के हत्यारे तक पुलिस पहुंचने की कोशिश में है पर कुछ लोग अनुमान के आधार पर आगे बढ़ने की जलद्बाजी में हैं जबकि ध्यान रहे कि सीवान में दुश्मन के दुश्मन को मार कर फंसाने का खेल भी खूब चलता है.rajdev.ranjan

ज्ञानेश्वर

पत्रकार राजदेव रंजन‬ के कातिलों की गिरफ्तारी तक कोई भी पत्रकार चुप नहीं बैठेगा । ‪बिहार‬ भी साथ है । हम जानते हैं कि केस को क्रैक करना थोड़ा मुश्किल है । लेकिन इस मुश्किल का रास्‍ता निकलेगा । कातिल बहुत दिनों तक भाग नहीं सकता ।

 

हम कइयों की तरह सीधा फोरकास्‍ट नहीं कर रहे,वजह कि तार जोड़ने हैं । बगैर ठीक तार जोड़े कुछ हासिल नहीं होने वाला । असली कातिल पकड़ा जाना जरुरी है । फिर तो उसके ‘बाप’ (कोई हो तो) भी जद में आ ही जायेंगे । वैसे मामले में ‪सीबीआई जांच की संभावना बढ़ती जा रही है ।
शूटर की बात समझ में साफ है । पर समझना होगा कि जिला सीवान है । अब यह सिर्फ डा. राजेन्‍द्र प्रसाद का जिला नहीं है । कोई सीवानवासी बुरा मत मानेंगे । पर सच है कि सीवान के ड्रेंस में दूसरे जिलों की तुलना में क्रिमिनल अधिक व आसानी से पैदा होते हैं । वह भी बेहद खतरनाक इरादों के साथ । इनके हाथों में जल्‍द तमंचा थमा देना आसान होता है । जहां तक अंडरवर्ल्‍ड के शातिरों को मेरे समझने का अनुभव है,वह कहता है कि राजदेव रंजन की हत्‍या सचमुच बहुत चालाकी से की गई तो इसमें सीवान के लिए बिलकुल नये/दूर के शूटर्स शामिल किये गये हों । हां, इनके लिए लोकल लाइन-डोरी अलग से जरुर रही होगी । मुंबई के अंडरवर्ल्‍ड में डॉन अबू सलेम बहुत जल्‍दी हिट इसलिए हो गया था कि वह उत्‍तर प्रदेश से निमूंछियों को ले जाता व कांड कराने के बाद वापस भेज देता । ऐसे में,मुंबई पुलिस को सलेम के मॉडस अप्रेंडी को समझने में ही बहुत वक्‍त लग गया । तब तक देश को झकझोरने के लिए गुलशन कुमार की हत्‍या अबू सलेम ने करा दी थी ।
सीवान में कुछेक गिरफ्तारियां हुई हैं । आगे भी होंगी । हां,इनसे कुछ हिंट्स जरुर मिल सकते हैं । मेन और साइड शूटर ने तो दूर की राह पकड़ ली होगी । जो पकड़े गए,वे सीवान में ही थे । यह सवाल उठना लाजिमी है कि इन हिस्‍ट्रीशीटरों को आजादी कैसे मिली हुई थी । घटना-स्‍थल के पास लगे सीसीटीवी को जान-बूझ कर छेड़ा गया,प्रमाणित हो जाए,तो असली लीड्स आसानी से मिल सकते हैं । ये सभी सीसीटीवी प्राइवेट थे ।

क्राइम कंट्रोल में खोखली पुलिस
केस से जेल कनेक्‍शन की जांच चल रही है । राजदेव रंजन से अन-बन बहुत पुरानी थी । पर,यह समय क्‍या ‘डॉन’ को तय करने के लिए ठीक था,,स्‍टोरी अभी प्रमाणित होनी है । वजह कि इसके बाद तो जेल से आजादी की उम्‍मीदें और कठिन हो जाती है । सीवान में दुश्‍मन के दुश्‍मन को मार कर फांस देने का खेल भी चलता रहा है । जहां तक बिहार के लॉ एंड आर्डर का सवाल है,बिहार की शिकायत से सहमत हूं कि अपराध के पहले बिहार की पुलिस कार्रवाई में जीरो की ओर बढ़ती जा रही है । अपराध बाद की कार्रवाई मात्र से पुलिस का इंटेलीजेंस क्राइम कंट्रोल में बहुत खोखला होता दिखता है ।
दिल्‍ली के चर्चित पुलिस कमिश्‍नर अजय राज शर्मा का अनुभव सुनाता हूं । जंगल राज के बाद नीतीश कुमार बिहार में मुख्‍य मंत्री बने थे । अजय राज शर्मा से मेरी मुलाकात दिल्‍ली में राष्‍ट्रपति भवन में हुई । वे रिटायर कर गये थे । तब डा. एपीजे कलाम राष्‍ट्रपति थे । बिहार की चर्चा करते ही उन्‍होंने कहा कि बगैर टारगेट तय कर अपराधियों पर शिकंजा कसे क्राइम कम नहीं कर सकते । कुछ मुठभेड़ भी करने होंगे । मुठभेड़ तब बहुत भले न हुए हों,लेकिन टारगेट तय कर कार्रवाई बिहार में जरुर हुई थी । पर, आज बातों के अलावा अपराध के पहले ही सक्रिय अपराधियों पर पुलिस को टूट पड़ते हम कहीं नहीं देख रहे,जो सचमुच दुखद है ।

फैसबुक से

By Editor


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