लोकपाल और लोकायुक्त संशोधन विधेयक के बारे में गठित संसद की स्थायी समिति ने लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार की सभी शिकायतों की जांच लोकपाल के दायरे में लाने तथा इसकी नियुक्ति करने वाली चयन समिति में लोकसभा में विपक्ष के नेता की बजाय सबसे बड़ी पार्टी के नेता को शामिल करने की सिफारिश की है।
कार्मिक , लोक शिकायत , विधि और न्याय संबंधी संसद की स्थायी समिति ने लोकपाल और लोकायुक्त तथा अन्य संबंधित कानून (संशोधन) विधेयक 2014 के बारे में अपनी रिपोर्ट आज संसद के दोनों सदनों में पेश की। लोकपाल संशोधन विधेयक गत 18 दिसम्बर को लोकसभा में पेश किया गया था और 22 दिसम्बर को इसे संसद की स्थायी समिति को भेज दिया गया था। समिति में दोनों सदनों के 31 सदस्य थे और इसने तीन बार समय बढाने तथा लगभग एक साल तक विचार विमर्श के बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी है।
समिति के अध्यक्ष डा. ई एम एस नच्चीयप्पन ने बाद में संवाददाता सम्मेलन में बताया कि मौजूदा व्यवस्था में केन्द्रीय सतर्कता आयोग, लोकपाल और केन्द्रीय जांच ब्यूरो के कार्यक्षेत्र को लेकर भ्रम की स्थिति है । इसे देखते हुए समिति ने सीवीसी और सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को लोकपाल के मातहत लाने की सिफारिश की है, जिससे कि सभी शिकायतों का निपटारा एक ही एजेन्सी के तहत किया जा सके। उन्होंने कहा कि अभी किसी भी नेता को लोकसभा में विपक्ष के नेता का दर्जा नहीं दिया गया है और यह स्थिति भविष्य में भी उत्पन्न हो सकती है। इसलिए समिति ने लोकसभा में सबसे बडी पार्टी के नेता को लोकपाल की नियुक्ति करने वाली चयन समिति में शामिल करने की सिफारिश की है।