उच्चतम न्यायालय ने कॉल ड्रॉप होने की स्थिति में एक जनवरी 2016 के बाद से उपभोक्ताओं को एक रुपया मुआवजा देने के फैसले को कायम रखने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने संबंधी दूरसंचार सेवा प्रदाताओं की याचिका पर आज अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति रोहिनटन एफ नरीमन की खंडपीठ ने केंद्र सरकार और दूरसंचार कंपनियों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकारण (ट्राइ) के उस आदेश को बरकरार रखा था, जिसमें उसने दूरसंचार कंपनियों को कॉल ड्रॉप की स्थिति में उपभोक्ताओं को एक जनवरी 2016 के बाद से एक रुपये का मुआवजा देने को कहा था। उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा था, “हमारा मानना है कि यह विनियमन किसी भी आधार पर ट्राइ के विनियामक अधिकार से बाहर नहीं हो सकता। ट्राइ का निर्णय ‘किसी भी परिस्थिति में’ ‘हर्जाना’ नहीं माना जा सकता।”
ट्राइ ने 16 अक्टूबर 2015 को घोषणा की थी कि कॉल ड्राप की स्थिति में टेलीकॉम ऑपरेटर एक जनवरी 2016 से उपभोक्ताओं के खाते में प्रत्येक कॉल ड्रॉप (प्रतिदिन अधिकतम तीन) पर एक रुपये जमा करेंगे। ट्राइ ने कहा था कि नियमित कॉल ड्राप की उपभोक्ताओं की शिकायत के बाद यह नीति बनायी गयी थी। वर्ष 2015 की पहली तिमाही के दौरान उपभोक्ताओं ने 25 हजार 787 करोड़ आउटगोइंग कॉल किए थे, जिनमें से कॉल ड्रॉप के 200 करोड़ मामले सामने आए थे। उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए दूरसंचार कंपनियों ने शीर्ष न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। ट्राइ की ओर से बहस करते हुए एटर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि यदि कंपनिया कॉल ड्रॉप की क्षतिपूर्ति उपभोक्ताओं को उतने ही मुफ्त कॉल के तौर पर कर देती है तो उन पर जुर्माना लगाने के निर्णय पर पुनर्विचार किया जा सकता है।