सुप्रीम कोर्ट ने सख्त कदम उठाते हुए सीबीआई के नये निदेशक नागेश्वर राव के अब तक के सारे फैसले को रद्द कर दिया है और कहा है कि वह कोई नीतिगत फैसले नहीं ले सकते हैं.
अदालत ने यह भी आदेश दिया है कि 23 अक्टूबर से अब तक उनके द्वारा लिये गये निर्णय का व्यौरा सीलबंद लिफाफे में अदालत में पेश करें.
CBI निदेशक के पद से आलोक वर्मा को हटाये जाने के बाद वह इस फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले की सुनवाई करते हुए ये आदेश दिये हैं.
कांग्रेस नेता रणदीप सूरजे वाला ने कहा है कि अदालत का यह फैसला देश की विश्वसनीय संस्था(सीबीआई) को नुकसान पहुंचाने वाले तानाशहों के गाल पर तमाचा है.
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चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है.
अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एके पटनाइक सीवीसी की जांच पर नजर रखेंगे और इस मामले में पूरा डिटेल नवम्बर 12 को होने वाली सुनवाई में सामने रखी जायेगी.
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इस मामले को आलोक वर्मा की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता एफएस नरीमन ने अदालत में रखा. नरीमन ने तर्क दिया है कि सीबीआई चीफ की नियुक्ति पीएम, चीफ जस्टिस और अपोजिशन के नेता की टीम करती है जिसे सरकार रद्द नहीं कर सकती.
बेंच ने सीवीसी को यह भी आदेश दिया है कि इस मामले की जांच दो हफ्ते में पूरी कर ली जाये.
याद रहे कि सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच उत्पन्न विवाद एक दूसरे के खिलाफ आरोप प्रत्यारोप तक पहुंच गया था इसके बाद आलोक वर्मा ने अस्थाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली थी. इस घटनाक्रम के बाद केंद्र सरकार ने 23 अक्टूबर को आधी रात को आलोक वर्मा को उनके पद से हटा कर उन्हें छुट्टी पर भेज दिया और उनके बदल नागेश्वर राव को सीबीआई को अंतरिम निदेशक बना दिया था.
इस बीच पद संभालते ही राव ने उन तमाम अफसरों का तबादला कर दिया जो राकेश अस्थाना पर लगे इल्जामात की जांच कर रहे थे. अदालत ने इन तमाम फैसलों पर रोक लगा दी है.
समझा जाता है कि अदालत के इस फैसले से मोदी सरकार को जोरदार झटका लगा है.