भाजपा नेता सुशील मोदी चाहते हैं कि अतिपिछड़ों को बिहार में मिलने वाले आरक्षण का दायरा 21 प्रतिशत से बढ़ा कर 33 प्रतिशत किया जाये. वह यह भी चाहते हैं कि आरक्षण का जो मौजूद प्रावधान है उसे बढ़ा कर 60 प्रतिशत किया जाये.
मोदी यह बात, अपने पैतृक संगठन आरएसएस के वरिष्ठ नेता मनमोहन वैद्य के उस बयान के बाद कही जिसमें उन्होंने आरक्षण खत्म करने की मांग दोहराई थी. सुशील मोदी ने आरक्षण बढ़ाने की बात कर्पूरी जयंती समारोह में कही. भाजपा का कोई भी नेता आरक्षण बढ़ाने की बात जब भी करता है तब उनकी बातों में आरक्षण प्राप्त कर रहे समुहों को विश्वास कम, संशय ज्यादा होता है. क्योंकि भाजपा की पूरी राजनीति आरक्षण विरोध की धुरी पर खड़ी है. इतना ही नहीं सुशील मोदी, जिन जन नायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती के अवसर पर यह बात कही, उन्हीं जन नायक ने जब सत्तर के दशक में आरक्षण लागू किया तो उनकी सरकार को गिराने में भाजपाइयों ( तब जनसंघ) ने कोई कसर नहीं छोड़ी. इतना ही नहीं तब जन संघ के लोगों ने कर्पूरी ठाकुर की मां-बहन तक को भद्दी गालियां दीं. ऐसे में अगर भाजपा के कुछ नेता आरक्षण का दायरा बढ़ाने या आरक्षण जारी रखने की बात करते हैं तो ज्यादतर लोगों को विश्वास कम संशय ज्यादा होता है.
हालांकि इसमें संदेह नहीं कि सुशील मोदी खुद पिछड़े समुदाय से आते हैं. और उनमें पिछड़ों के अधिकार के प्रति संवेदनशीलता भी है लेकिन वह जिस राजनीतिक दल की नुमाइंदगी करते हैं उसकी राजनीति आरक्षण विरोधी है. इसलिए मोदी की आरक्षण संबंधी बातें, खुद उनकी ही पार्टी में स्वीकार्य नहीं है.
कर्पूरी जयंती पर 24 जनवरी को बिहार में तीन बड़े राजनीतिक दलों-राजद, जदयू और भाजपा ने उन्हें याद किया. तीनों दलों के नेताओं- लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और सुशील मोदी ने आरक्षण पर अपनी बातें रखीं. लेकिन लालू और नीतीश ने याद दिलाया कि भाजपा ने कर्पूरी ठाकुर के आरक्षण की नीति का विरोध किया. लालू ने तो आरएसएस के नेता गुरु गोलवलकर की किताब वंच ऑफ थाट्स का हवाला देते हुए कहा कि उसमें लिखा है कि आरक्षण देशहित में नहीं है.
भारतीय जनता पार्टी ने मंडल कमिशन की सिफारिशें लागू करने, उच्च शिक्षण संस्थानों में पिछड़ों को आरक्षण देने का भी विरोध किया था. ऐसे में भाजपा नेता सुशील मोदी अगर अतिपिछड़ों को मिलने वाले आरक्षण का दायरा बढ़ाने की बात करते हैं तो पिछड़े समुदायों को उनकी बातों में संदेह ही दिखता है.