सुशील कुमार मोदी जी. आप ने कभी शत्रुघ्न सिन्हा की आंखों में आंखें डालने का साहस किया है? सार्वजनिक हैसियत, सम्मान, शख्सियत, इज्जत गोया हर मामले में शत्रुघ्न सिन्हा आप से भारी हैं. लेकिन आपने उनके साथ यह क्या कर दिया?
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
मोदी जी आप बिहार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं तो शत्रुघ्न सिन्हा केंद्र की वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. आपने पटना में शिक्षा प्राप्त की है तो शत्रुघ्न भी पटना में ही पढ़े-लिखे और बड़े हुए हैं. उम्र में भी वह आप से बच्चे नहीं हैं. लेकिन आपने उनके प्रति जिस घिनौने शब्द का इस्तेमाल सार्वजनिक तौर पर किया, उससे आपकी रही सही इज्जत को भी बट्टा लग गया है.
आप शत्रुघन सिन्हा को बीजेपी का ‘शत्रु’ कहके भले ही दोअर्थी शब्द का उच्चारण कर बचने की तरकीब निकाल लें लेकिन उनके लिए ‘गद्दार’ जैसा शब्द कहके अच्छा नहीं किया. शत्रुघ्न ने तो बस इतना ही कहा था कि नकारात्मक राजनीति नहीं होनी चाहिए. किसी पर आरोप लगाये जायें तो उसके सुबूत भी दिये जायें. मीडिया को सनसनीखेज खबर देने से बाज आया जाये. उन्होंने जब यह बातें कहीं तो लालू प्रसाद का भी नाम लिया. वह लालू प्रसाद और उनकी पार्टी को भी कहना चाह रहे थे कि आरोप प्रत्यारोप से बचा जाये. लेकिन आपने शत्रुघन सिन्हा पर असंसदीय स्तर पर जा कर टिप्पणी कर दी.
यह सही है कि शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा के नेता हैं और उन्हें पार्टी लाइन से बाहर जा कर टिप्पणी करना नहीं चाहिए. लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि राजनीति में कुछ नेताओं की छवि तमाम बातों और विरोधों के बावजूद सम्मानजनक होती है. ऐसे नेता राजनीतिक दल के बजाये राजनीति की मर्यादा को भी तवज्जो देते हैं. ऐसे अनेक नेताओं की लम्बी लिस्ट है. शत्रुघ्न सिन्हा भले ही खालिस राजनेता अब हुए हों पर करियर के रूप में उन्होंने फिल्मों को चुना था. इस लिहाज से शत्रुघ्न जैसी शख्सियत की सेवा भाजपा को तब मिली थी जब भाजपा बड़ी शख्सियत के नेताओं की तलाश में दर ब दर भटकती रही थी. उनकी उसी शख्सियत का एहतराम करते हुए वाजपेयी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामलि किया था. पर मोदीजी आपने शत्रुघ्न के खिलाफ ओछे शब्द का प्रयोग करके वाजपेयी की परम्परा का भी अपमान कर दिया.
शत्रुघ्न से खुन्नस
सच यह भी है कि पिछले दो-तीन वर्षों से शत्रुघ्न सिन्हा पार्टी लाइन से अलग जा कर अनेक बार टिप्पणी करते रहे हैं. और हो सकता है कि उनके प्रति आपकी नाराजगी गुस्सा बन कर इसलिए भी फूटी हो. वह कभी लालू, तो कभी नीतीश और कभी केजरवाल की तारीफ करते रहे हैं. ऐसे में आपकी पार्टी ने उन्हें क्यों नहींं कारण बताओ नोटिस दिया? आप संगठन में हैं इसकी मांग आप पार्टी फोरम पर उठा सकते थे. लेकिन आपने ऐसा साहस कभी नहीं दिखाया और ओछे शब्द पर उतर आये.
गिरती राजनीति
मोदी जी.. जब जद यू के प्रवक्ता संजय सिंह आपके बारे में ‘सिजोफ्रेनिया के शिकार’, ‘मानसिक बीमार’, ‘पागलखाने में भर्ती करने योग्य’ नेता जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं तो मुझे निजी तौर पर संजय के इस बयान से आपत्ति होती रही है. मैंने अनेक बार संजय कुमार की इसके लिए आलोचना भी की है. सार्वजनिक जीवन में किसी व्यक्ति पर ऐसे निजी हमले गलत संदेश देते हैं. लेकिन सच्चाई यह भी है कि बिहार की राजनीति में बदजुबानी की परम्परा को मजबूत करने वालों में जिनका नाम सबसे ऊपर आयेगा उसमें आप सब से पहले शामिल होंगे.
लालू प्रसाद के कुनबे पर कथित घोटालों का आरोप लगाने के आपके अंदाज की अगर बात करें तो, यह कहा जा सकता है कि आप जैसे नेता लोकतंत्र के लिए जरूरी होते, अगर आपके आरोपों के पीछे मजबूत आधार होता. आपने अब तक दर्जनों आरोप लालू प्रसाद और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ लगाया है. अगर आप इन आरोपों को साबित कर दें तो बिहार का लोकतंत्र आपका अभारी रहेगा. एक तरह से यही बात शत्रुघ्न सिन्हा ने भी आपसे कही है. और पूरा बिहार बल्कि पूरा देश भी आपसे यही कहेगा. लेकिन अगर आपके आरोपों में दम नहीं, तो आपकी विश्वस्नीयता पर कोई भी सवाल उठायेगा. ऐसे में आपको अपने सार्वजनिक जीवन की साख को बचानी है तो आप अपने आरोपों को साबित करें.