पटना विश्वविद्यालय के केंद्रीय लाइब्रेरी के अधिकारियों के अनुसार 1985 से 1990 के दौरान खरीदी गई इन किताबों को चोरी हो जाने के डर से इशू नहीं किया जा रहा था। इस दौरान ये किताबें शौचालय के समीप पड़ी रहीं। इतने साल शौचालय के पास पड़े रहने के कारण कई किताबों को दीमक चाट गए। हालांकि लाइब्रेरी के मौजूदा इंचार्ज प्रोफ़ेसर श्रीराम पद्मदेव कहते हैं कि जनवरी, 2015 से सारी नई किताबें बाथरूम से रीडिंग रूम तक का सफ़र पूरा कर लेंगी।
बीबीसीहिन्दीडॉटकॉम की खबर के अनुसार, ये महज़ सात हज़ार किताबों की बात नहीं है, बल्कि करीब दस साल ( 2004 से 2013 तक) कोई भी किताब इशू नहीं की गई। भारत के सबसे प्राचीन विश्वविद्यालयों में से एक बिहार के पटना विश्वविद्यालय से आठ कॉलेजों जुड़े हैं। मुख्य लाइब्रेरी की ऐसी हालत पर पर प्रो. पद्मदेव का कहते हैं कि दरअसल तब यूनिवर्सिटी में काफ़ी अराजक माहौल था, उसे देखकर यह निर्णय लिया गया था। वह कहते हैं कि उस अवधि में लाइब्रेरी 24 घंटे खुली रहती थी, प्रवेश पर रोकथाम नहीं थी। विश्वविद्यालय और बाहरी छात्रों की पहचान मुश्किल थी। इसीलिए किताबों की चोरी रोकने के इरादे से किताबें इशू करना ही रोक दिया गया था।
लोगों की प्रतिक्रिया
सेंट्रल लाइब्रेरी में पढ़ते मिले बीए फर्स्ट इयर के छात्र सुमित रंजन और बीएन कॉलेज के थर्ड इयर के छात्र मानस प्रकाश उपाध्याय कहते हैं कि पिछले दो माह से ही किताबें मिल रही हैं लेकिन ये स्तरीय नहीं हैं। लॉ के छात्र सुमित कुमार भगत ने किताबों की कमी और पुस्तकालय में छुट्टियां ज़्यादा होने जैसी खामियों की बात की। पटना विश्वविद्यालय में करीब 22 हज़ार छात्र-छात्राएं हैं। ज़्यादातर छात्रों को 25 साल से शौचालय के पास पड़ी किताबों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इस मुद्दे पर पटना कॉलेज के प्रिंसिपल प्रोफ़ेसर नवल किशोर चौधरी कहते हैं कि मांग की कमी के चलते पुस्तकें रहने के बावजूद इशू नहीं हो पा रही हैं। इसके लिए राज्य सरकार, विश्वविद्यालय प्रशासन और आम लोगों को आगे आना होगा। विभिन्न कॉलेज और कोर्स के विद्यार्थियों को पढ़ाई से जुड़ी सामान्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए विश्वविद्यालय ने 1958 में केंद्रीय लाइब्रेरी की स्थापना की थी।
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