पटना, २८ फ़रवरी। युवा लेखक डा कुमार अरुणोदय आकाश–धर्मी रचनाकार हैं। इनकी रचनाओं में संवेदनाएँ और समाज की पीड़ा मुखर होती हैं। ये संसार छोटी–छोटी घटनाओं को नवीन दृष्टि से देखते हैं और उन्हें शब्द देते हैं। ये उन साहित्यकारों की भाँति नहीं लिखते जो अपनी रचनाओं को शब्दाडंबर से भर कर समाज में परोसते हैं और पाठक लाख चेष्टा कर भी उन्हें समझ नही पाता है। ये केवल समस्या हीं नही गिनाते समाधान भी देते हैं।
यह बातें आज यहाँ हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्त्वावधान में, अनुग्रह नारायण सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान में, समाज सेवी और साहित्यकार डा कुमार अरुणोदय की पुस्तक ‘राग अशेष‘ का लोकार्पण करते हुए, सुप्रतिष्ठ कवि डा सुरेश अवस्थी ने कही। डा अवस्थी ने कहा कि, डा अरुणोदय की लेखकीय विशेषता यह है कि, वे काम शब्दों में गम्भीर चिंतन की बातें करते हैं। इनकी दृष्टि आलोचनात्मक है। किंतु ये केवल समस्या हीं नहीं बताते समाधान भी प्रस्तुत करते हैं।
समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित चर्चित कार्टूनिस्ट एवं कथाकार आबिद सुरती ने लेखक को शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि, जीवन के प्रश्नों, आत्मा और परमात्मा को लेकर मानव मन में सदियों से जो बातें चली आ रही है, उन्हें इस पुस्तक में नए अंदाज़ और विचारों के साथ लाई गई हैं। लेखक के विचार पाठकों को प्रभावित करनेवाले हैं।
अपने अध्यक्षीय उद्गार में सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने लेखक को, कोमल भावनाओं से युक्त एक विनम्र और भावुक कवि बताया। उन्होंने कहा कि, डा अरुणोदय एक संवेदनशील और संभावनाओं से संपन्न रचनाकार हैं। गद्य और पद्य, दोनों में ही, इनकी प्रतिभा मुखर होकर प्रकट होती है। लेखन–कार्य को समय दे पाएँ तो साहित्य–संसार इनके अवदानों से लाभान्वित हो सकता है। लोकार्पित पुस्तक में, जीवन के विविध पक्षों और मूल्यों पर, लेखक के ऊर्जा–संपन्न विचारों का परिचय और मार्ग–दर्शन मिलता है।
डा सुलभ ने कहा कि, सम्मेलन भवन के मुख्य–द्वार और चाहरदीवारी का उन्नयन किया जा रहा है। जीर्णोद्धार के कार्य चल रहे हैं, इसलिए सम्मेलन का यह उत्सव अन्यत्र करना पड़ा है। किंतु इसका एक दूसरा पक्ष यह भी है कि हम सम्मेलन के कार्यों का विस्तार अन्य संस्थाओं के साथ जुड़ कर भी करना चाहते हैं। उन्होंने सम्मेलन के, आगामी १७–१८ मार्च को आहूत ३९वें महाधिवेशन के लिए भी विद्वानों को आमंत्रित किया।
अतिथियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए पुस्तक के लेखक डा कुमार अरुणोदय ने कहा कि, नयी पीढ़ी को साहित्य के माध्यम से हीं संस्कारित किया जा सकता है। युवा–वर्ग को राजनीति के स्थान पर राष्ट्र–नीति में दीक्षित करने की आवश्यकता है।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, डा अमूल्य कुमार सिंह, कवयित्री भावना शेखर, मृत्युंजय सिंह, सूरज सिन्हा, डा सी के सिंह, शैलेंद्र कुमार सिंह, विपिन कुमार तथा कृष्ण चंद्र बाजपेयी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर, दूरदर्शन, पटना की कार्यक्रम अधिशासी रत्ना पुरकायस्था, प्रो वासुकीनाथ झा, कुमार अनुपम, डा मेहता नगेंद्र सिंह, समीर परिमल, कृष्ण रंजन सिंह, बच्चा ठाकुर, कवयित्री अनुपमा नाथ, बच्चा ठाकुर, शालिनी पांडेय, गणेश झा, राज कुमार प्रेमी, शिलेंडर झा ‘उन्मन‘, जय प्रकाश पुजारी, शुभ चंद्र सिन्हा, राज किशोर झा, प्रो सुशील कुमार झा, पंकज प्रियम समेत सैकड़ों की संख्या में विद्वान साहित्यकार एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
मंच का संचालन सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।