चकबंदी विभाग के पूर्व महानिदेशक अशोक खेमका द्वारा रॉबर्ट वाड्रा-डीएलएफ जमीन सौदा रद्द करने के बाद हरियाण सरकार इतनी हिम्मत नहीं जुटा पा रही है कि वह अब क्या करे.
महानिदेशक के पास पर्याप्त शक्तियों के चलते उसके आदेशों को केवल अदालत में ही चुनौती दी जा सकती है, लेकिन डीएलएफ या वाड्रा ने अभी तक खेमका के आदेश को कोर्ट में चुनौती नहीं दी है.
हरियाणा के तत्खेकालीन चकबंदी महानिदेशक अशोक मका ने 12 अक्टूबर को वाड्रा के सभी जमीन सौदों की पड़ताल करने का आदेश दिया था और 15 अक्टूबर को वाड्रा की कंपनी की ओर से डीएलएफ को बेची गई साढ़े तीन एकड़ जमीन के सौदे को गैरकानूनी बता कर रद्द कर दिया था. इसके बाद हरियाणा सरकार ने खेमका को आनन फानन में उनके पद से हटा दिया था. फिर पूरे देश में कोहरमा मच गया था.
खेमका को अपने अधिकार की हदों का पूरा एहसास था तभी तो उन्होंने हरियाणा सरकार, रियल स्टेट कम्पनी डीएलएफ और रॉबर्ट वाड्रा को अवकात बताते हुए कहा था कि उनेक आदेश को सिर्फ अदालत में ही चुनौती दी जा सकती है.
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इस मामले में न तो अभी तक खेमका के आदेश का पालन हुआ है और न ही उनके आदेश निरस्त हुए हैं.
तीन सदस्यीय जांच कमेटी की पहली बैठक सोमवार सचिवालय में हुई, लेकिन इसमें कुछ तय नहीं हो पाया. जांच कमेटी के एक अधिकारी ने यह कुबूल किया कि सरकार को ऐसे आदेशों पर या तो जांच कमेटी अपनी कोई राय दे सकती है या फिर हाई कोर्ट में ही चुनौती दी जा सकती है. अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) कृष्ण मोहन के नेतृत्व में आबकारी एवं कराधान विभाग के वित्त आयुक्त राजन गुप्ता और सिंचाई विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव केके जालान इस जांच कमेटी के सदस्य हैं.
जांच कमेटी पूरे मामले में फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहती है. कमेटी ने यह तो तय कर लिया है कि खेमका के ट्रांसफर और उसके बाद लिए गए उनके फैसलों की जांच करवाई जाएगी, लेकिन इस पर ऊहापोह है कि जांच की दिशा क्या हो? ऊहापोह में फंसी सरकार के सामने एक उपाय एडवोकेट जनरल से राय लेने का भी है, लेकिन अभी इस पर कोई फैसला नहीं हो पाया है.