वरिष्‍ठ पत्रकार राहुल देव ने कहा कि सोशल मीडिया ने संभावनाओं के अनंत द्वार खोल दिए हैं। लेकिन इन रास्‍तों के खतरे भी कम नहीं हैं।  /naukarshahi.com/  के साथ पटना में हुई खास मुलाकात में उन्‍होंने स्‍वीकार किया सोशल मीडिया को भी मर्यादित करने के लिए नियमन जरूरी है।rahul 2

राहुल देव के साथ वीरेंद्र यादव की खास बातचीत

 

 

प्रिंट व इलेक्‍ट्रानिक के बाद अब सोशल मीडिया का दौर शुरू हो गया है। इसमें युवाओं के लिए कैरियर की क्या संभावनाएं क्‍या है?

 सोशल मीडिया में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। नये मीडिया ने कार्यालय की अनिवार्चता को कम किया है। एक साथ कई रोजगार किये जा सकते हैं। यह सब व्‍यक्ति की क्षमता और अपेक्षाओं पर निर्भर करता है। मीडिया से जुड़े लोगों के लिए कैरियर के लिए अखबार और टीवी के साथ नया विकल्‍प भी मौजूद हो गया है। यह ज्‍यादा सहज और तकनीकीपूर्ण है।

 

 अभिव्‍यक्ति के स्‍तर क्‍या बदलाव आया है?

 सोशल मीडिया ने अभिव्‍यक्ति के अनंत द्वार खोले हैं। आप अपनी बात बिना दबाव, डर या भय के अभिव्‍यक्‍त कर सकते हैं। अखबारों या चैनलों की संपादकीय नीति होती है और आपको उसके फ्रेम में रह कर काम करना पड़ता है। सोशल मीडिया में ऐसी कोई बाध्‍यता नहीं है। आप अखबारों या चैनलों की कमियों को उजागर कर सकते हैं। उनकी संपादकीय नीति के खिलाफ लिख सकते हैं। सोशल मीडिया ने अभिव्‍यक्ति की भौगोलिक सीमाओं का खत्म कर दिया है।

 

 प्रभाव के स्‍तर पर क्‍या असर देख रहे हैं?

सोशल मीडिया का व्‍यापक प्रभाव पड़ रहा है। अपने कार्य क्षेत्र में अपनी धाक बनाए रखने के लिए लोग लोग सोशल मीडिया में आ रहे हैं। राजनीतिक पार्टियां इसका जबरदस्‍त इस्‍तेमाल कर रही हैं। नरेंद्र मोदी या अरविंद केजरीवाल ने चुनावों में सोशल मीडिया का जबरदस्‍त इस्‍तेमाल किया। अन्‍ना आंदोलन को सबसे ज्‍यादा ताकत सोशल मीडिया से ही मिली थी। अब सरकार भी अपनी उपलब्धियों के प्रचार प्रसार के लिए सोशल मीडिया के मंच पर आ रही है।

 

सोशल मीडिया का सबसे ज्‍यादा असर कब दिखा?rahul 4

 निर्भया रेपकांड के बाद सोशल मीडिया ने बड़ी भूमिका का निर्वाह किया। इस दौर का आंदोलन सोशल मीडिया की उपज था। इसका राष्‍ट्रव्‍यापी विरोध भी सोशल मीडिया के कारण संभव हो सका था। अब सोशल मीडिया ने अपनी ताकत काफी बढ़ा ली है। इसके सोच-समझकर इस्‍तेमाल करने की जरूरत है।

 

 सोशल मीडिया के खतरे कौन से हैं?

तकनीकी अपने साथ खतरों को लेकर भी आती है।  इमेज बिल्डिंग के साथ छवि को ध्‍वस्‍त करने के लिए भी इसका इस्‍तेमाल किया जा रहा है। अफवाह, विद्वेष और हिंसा भड़काने में भी इसकी बड़ी भूमिका सामने आ रही है। यह चरित्र हनन का माध्‍यम भी बन रहा है। लेकिन सोशल मीडिया के सकारात्‍मक पक्ष भी है। तकनीकी आएगी तो संभावनाओं के साथ आशंकाओं की जड़़े भी गहरी होंगी। तकनीकी और उसके नियमन की लड़ाई जारी रहेगी।

 

 सोशल मीडिया की लत सामाजिक समस्‍या के रूप में सामने आ रही है?

 यह स‍च है कि सोशल मीडिया के रूप में नयी पीढ़ी को नया नशा मिल गया है। लेकिन संभावनाएं भी यहीं दिख रही हैं। सोशल मीडिया की उपयोगिता को हम नकार या अनदेखी नहीं कर सकते हैं। इसके दुरुपयोग की आशंकाओं को खारिज नहीं किया जा सकता है। इसके बावजूद समाज को सोशल मीडिया के साथ जीना है तो हमारे अंदर की चेतना विकसित करना होगा। सिर्फ कानून बनाकर दुरुपयोग को नहीं रोका जा सकता है। सोशल मीडिया का मर्यादित और सकारात्‍मक इस्‍तेमाल हमें सृजन की ओर ले जाएगा और जबकि दुरुपयोग विध्‍वंस की ओर धकलेगा। सृजन और विध्‍वंस में से एक का चयन खुद के विवेक, सामाजिकता और इस्‍तेमाल पर निर्भर करता है।

By Editor


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