राहुल गांधी अचानक छुट्टी पर चले गये हैं. इस कारण भारतीय मीडिया ही नहीं बल्कि विदेशी मीडिया में भी शोर है. हमारे सम्पादक इर्शादुल हक ने राहुल के परनाना पंडित नेहरू की ओर से राहुल को एक काल्पनिक चिट्ठी भेजी है.
प्रिय राहुल
सुना है पिछले 10 सालों से तुम सक्रिये राजनीति में हो. अब तो तुम मेरी छोड़ी गई विरासत यानी कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली नेता बन चुके हो. पर यहां स्वर्ग में तुम्हारे बारे में कुछ शिकायतें भी लगातार मिलती रहती हैं. विरोधी कहें तो कोई बात नहीं पर कई दिग्गज पत्रकारों से यह बात सुनता हूं तो मेरा सर अफ़सोस से झुक जाता है. वो कहते हैं तुमने कुछ दिन पहले ही लिखे हुए भाषण को पढ़ने की आदत हाल ही में छोड़ी है ते. पत्रकारों के सवालों पर नर्वस हो जाते हो और कुछ का कुछ जवाब देते हो. जब हमने सुना कि तुम पिछले दिनों मुम्बई ब्लास्ट पर बोले कि आतंकवादी हमले कोई नहीं रोक सकता. तुम बोले कि अमेरिका भी नहीं. फिर पत्रकारों ने तुम्हें याद दिलाया कि 9/11 के बाद तो अमेरिका में कोई हमला नहीं हुआ. तो तुम झेप गये. चलो इतना तो ठीक है. फिर तुम्हें संभलना चाहिए था. पर संभलने की तुम्हारी कोशिश ऐसी थी कि उसे नाकाम ही कही जा सकती है. इसी तरह भट्टापुरसौल और पश्चिमी उत्तरप्रदेश की तुम्हारी पदयात्रा की तो तारीफ़ हुई पर वो भी इसलिए की पार्टी ने मीडिया को पूरी तरह मैनेज कर लिया था. पर मुझे मालूम चला है कि तुम्हारे व्यक्तित्व और बातें कोई खास असर न डाल सके. यहां स्वर्ग में हमारे साथ सम्पर्क मे रहने वाले पत्रकार भी तुमको लेकर चिंतित हैं. वे तो हमें आश्वस्त करते हैं कि वे तुम्हारे पधानमंत्री बनने तक तु्म्हारी हर कमजोरियों-खामियों को छुपायेंगे. पर यह एक हद तक ही संभव है.
सुनो राहुल मेरी चिंता इसलिए भी है कि इंदिरा और राजीव ने तो हमारी विरासत को ठीक-ठाक संभाला. पर तुममे हमें वो माद्दा और योग्यता नहीं देख रहे. चिंता इसलिए भी है कि तुम्हारे अलावा इस विरासत को किसी और के हवाले किया भी नहीं जा सकता क्योंकि प्रियंका को इसमें कम दिलचस्पी है. हालांकि मुझे लगता है कि वह राजनीतिक समझ के स्तर पर तुम से बीस पड़ती है. दूसरी दिक्कत यह है कि तुम प्रियंका को राजनीति में देखना भी नहीं चाहते.
मैं आज बहुत दुखी हूं इसलिए तुम से पूछ रहा हूं कि तुममे अगर राजनीति की समझ 10 सालों में भी विकसित नहीं हुई तो आखिर कब होगी. तुम खुल कर बोलो और सोच कर जवाब दो. चाहो तो तुम यह भी कह सकते हो कि राजनीति तुम्हारे लिए नहीं है या फिर तुम राजनीति के लिए नहीं हो.
पर अगर तुम यह सोचते हो कि तुम राजनीति के लिए नहीं हो तो आखिर किस काम के लिए हो, यह भी बताना. क्योंकि तुम अगर इतिहास के पन्नों को खंगालो तो पता चले कि मैंने कितनी मुश्किलों से कांग्रेस पर कब्जा जमाया था, एक विरासत विकसित की थी. अगर यह विरासत छिन्नभिन्न हुई तो सोंचो मेरी आत्मा को कितना कष्ट होगा. अभी-अभी यह भी पता चला है कि तुम बजट सत्र को छोड़ कर किसी गुमनाम जगह पर छुट्टियां बिताने चले गये. मुझे याद है कि मैंने भी पीडी टंडन और पटेल के तौर तरीकों से खिन्न हो कर छुट्टी मनाने चला गया. पर मैं लौटा और मजबूती से लौटा.
देखो राहुल 2014 के लोकसभा चुनाव में तुम्हारे रहते कांग्रेस की जो गत हुई वैसी हालत 100 वर्षों में कभी नहीं हुई. लोकसभा चुनाव के बाद एक एक कर तुम ने सारी रियासतें गंवा दीं. दिल्ली सलतनत उनमें से आखिरी है.
अभी तो मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा. पर जब तु्म्हारा जवाब मुझे मिलेगा तो अगले पत्र में मैं कुछ ऐसी बातें भी बताऊंगा जिसका उल्लेख इतिहास की पुस्तकों में भी नहीं हैं. वैसे तुमसे उम्मीद है कि तुम हमारी विरासत को संजोने की फिर से कोशिश करोगे और सफल रहोगे. सिर्फ धीरज न खोना. क्योंकि इंदू और राजीव ने कांग्रेस को बहुत संभाला-संवारा है. तुम उनसे हर संभव सीखने की कोशिश करो. कोई कोताही न करना.
तुम्हारा
पड़नाना पंडित जवाहर लाल
नोट- यह चिट्ठी कल्पनाशीलत पर आधारित है. इसमें शामिल बातों का वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है.