महागठबंधन रैली का यही सार था. लालू, नीतीश, सोनिया सब यही बता गये कि मोदी झूठे वादे करते हैं. वह भरोसे के काबिल नहीं. साथ ही यह भी कि मोदी ने बिहारियों के स्वाभिमान को चोट पहुंचायी इसलिए उन्हें जवाब दिया जाये. पर इन सबके इतर इस रैली का सीधा संदेश वह था जो लालू और नीतीश ने दिया. लालू ने पिछड़ों-दलितों को अगड़ों, खास कर भूमिहारों से भिड़ाया. जबकि मुसलमानों को जिक्र बस इतना भर इशारों में किया कि वह (भाजपा) साम्प्रदायिक दंगा फैला सकते हैं.
नौकरशाही न्यूज
लालू ने साफ कहा- भाजपा वही पार्टी है जो दलितों और पिछड़ों के कान में लोहा पिघला के डालती है. यादवों को कहा कि यदुवंशी यादव के साथ नहीं जायेंगे तो कहां जायेंगे. वहीं नीतीश ने एनडीए के एक नेता (अरुण कुमार) की उस बात को याद दिलाया कि वह बिहार के सीएम का छाती तोड़ने की बात करते हैं. इस रैली में हर वो कोशिश की गयी जिससे अगड़ों के पिछड़ों की भावनायें जागृत हों.
जबकि मुसलमान डरें. वहीं नीतीश ने अपने भाषण के कुल समय का 6 मिनट नरेंद्र मोदी के डीएनए वाले बयान पर लगाया. कहा कि हमारा डीएनए खराब है ? बिहार की भूमि से चाणक्य, मौर्य, अशोक जन्मे, हम उसी धरती के हैं तो हमारा डीएनए वही है जो यहां के सपूतों का है. फिर वे कहते हैं हमारा डीएन खराब है. डीएनए की बात को बिहारी स्मिता से और स्वाभिमान से सोनिया ने भी जोड़ा.
सोनिया ने कहा कि भाजपा बिहारियों को हर बार अपमानित करती है. उसने बिहार के डीएनए को खराब कहा. इसलिए बिहार के लोगों को मोदी को चुनाव में इसका जवाब देना है. उन्होंने भीड़ से पूछा- बोलिए देंगे न जवाब. भीड़ ने शोर मचाते हुए हां कहां.
भाषणों का क्रम चार घंटों से ज्यादा चला. महागठबंधन के तमाम बड़े नेताओं ने बातें रखीं. लालू, नीतीश,सोनिया, सपा के शिवपाल यादव, शरद यादव, वशिष्ठ नारायण गोया कि सबने अपने अपने तरीके से बिहारियों के स्वाभिमान को जगाया. नीतीश ने बिहार के हर जाति के महापुरुषों के डीएनए से अपने डीएनए को जोड़ा और यह याद रखा कि हर जातियों की नुमाइंदगी हो जाये.
बोलने के क्रम में लालू का आखिरी मौका था. लालू ने यादववाद की भावनाओं को खूब जगाया. पर रणनीतिकि रूप से मुसलमानों पर कुछ विशेष नहीं कहा. शायद इसलिए कि उन्हें लग रहा हो कि मुस्लिम वोट उनका सेफ जोन है.
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